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भारत के 16वें राष्ट्रपति के चुनाव के लिए वोटिंग जारी है। लोकसभा और राज्यसभा के अलावा, हर राज्य की विधानसभा में सीक्रेट बैलेट प्रक्रिया के तहत वोट डाले जा रहे हैं। वोटों की गिनती 21 जुलाई को होगी। द्रौपदी मुर्मु, एनडीए की प्रत्याशी हैं, तो वहीं यशवंत सिन्हा, विपक्ष के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव मैदान में हैं। राष्ट्रपति चुनाव के अतीत पर नजर डालें तो कई रोचक तथ्य सामने आते हैं। देश के पहले राष्ट्रपति के चुनाव में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से एक छोटी सी चूक हो गई थी। संसद भवन में जब वे वोट डालने लगे, तो उनके पैन से स्याही टपक गई। वहीं राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने के लिए एक उम्मीदवार रावण का मुकुट पहनकर नामांकन भरने पहुंचे, तो दूसरे प्रत्याशी नामांकन पत्र दाखिल करने के लिए घोड़े पर बैठकर आते थे। एक व्यक्ति तो अपनी नई नवेली दुल्हन को राष्ट्रपति चुनाव लड़ाने के लिए संसद भवन के स्वागत कक्ष पर पहुंच गया। फार्म भरने की कार्यवाही के दौरान जब दुल्हन की आयु पूछी तो वे चुपके से वापस खिसक गए।
नेहरू का पैन खराब था, तो उन्हें दूसरा मतपत्र दिया गया
लंबे समय तक लोकसभा के महासचिव रहे और संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप के साथ राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया को संपन्न करा चुके दिल्ली विधानसभा के पूर्व सचिव एसके शर्मा ने अमर उजाला डॉट कॉम से एक खास बातचीत के दौरान ऐसे कई रोचक तथ्यों से पर्दा हटाया है। एसके शर्मा के मुताबिक, देश के पहले राष्ट्रपति का चुनाव था। वोटर को पहले एक पैन दिया जाता है। उससे वे वन या टू लिखते हैं। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने अपने पैन से वन लिखा तो वहां स्याही का एक धब्बा गिर गया। कायदे से वह वोट रद्द होना चाहिए था। ऐसे में निर्वाचन अधिकारी को यह शक्ति होती है कि वह नया बैलेट पत्र जारी करे या नहीं। स्याही के धब्बे से नेहरू द्वारा दी गई वरियता दिखाई नहीं पड़ रही थी। संसद भवन में हलचल सी मच गई। हालांकि बाद में पीएम नेहरू को यह मानकर कि उनका पैन खराब था, दूसरा बैलेट पत्र दे दिया।
एक तरफ रावण का मुकुट तो दूसरी ओर घोड़े वाला
राष्ट्रपति चुनाव में काका जोगेंद्र सिंह उर्फ धरती पकड़ का नाम खासा मशहूर रहा है। हालांकि इस नाम के तीन अलग-अलग व्यक्ति रहे हैं। नागर मल बाजोरिया उर्फ काका धरती पकड़ ने कई बार राष्ट्रपति पद का बतौर निर्दलीय उम्मीदवार, चुनाव लड़ा था। वे लोकसभा और विधानसभा के अनेक चुनाव लड़ चुके थे। उन्होंने फखरूदीन अली अहमद, नीलम संजीव रेड्डी, ज्ञानी जैल सिंह और आर. वेंकटरमण के सामने चुनाव लड़ा था। वैंकटरमण के सामने चुनाव लड़ने के लिए जब वे नामांकन भरने पहुंचे तो रावण का मुकुट पहन कर आए थे। उस वक्त एसके शर्मा, निर्वाचन अधिकारी सुभाष कश्यप के सहायक के तौर पर काम कर रहे थे। भगवती प्रसाद ‘रायबरेली’, ये शख्स घोड़े पर बैठकर नामांकन दाखिल करने आते थे। अपने घोड़े को संसद भवन के बाहर कहीं बांध देते थे। भोपाल के कपड़ा व्यापारी मोहन लाल, जिन्होंने पांच विभिन्न प्रधानमंत्रियों के खिलाफ चुनाव लड़ा था, वे भी अपने नाम के साथ धरती पकड़ लिखते थे।
नई नवेली दुल्हन, राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने पहुंची
अस्सी और नब्बे के दशक में राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के लिए अनेक व्यक्ति चले आते थे। संसद भवन के स्वागत कक्ष पर फार्म मिल जाता था। एसके शर्मा उस वक्त वहीं पर मौजूद थे। एक व्यक्ति अपनी नई नवेली दुल्हन को लेकर वहां पहुंच गया। उसने कहा, राष्ट्रपति चुनाव का नामांकन फार्म दे दें। उससे पूछा गया कि आप में से कौन, राष्ट्रपति का चुनाव लड़ेगा। उस व्यक्ति ने जवाब दिया कि उनकी पत्नी चुनाव लड़ेंगी। उन्हें फार्म तो दे दिया गया। एसके शर्मा ने पूछा, आप अपनी आयु बताएं। दुल्हन शर्मा गई। स्थिति को भांपते हुए शर्मा ने कहा, देखिये मैडम राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के लिए कम से कम 35 वर्ष की आयु होना जरुरी है। इतना सुनते ही वे दोनों चुपचाप, संसद भवन से बाहर की ओर निकल गए।
मुझे चाय-पानी के लिए कोई नहीं पूछ रहा
उस दौर में राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के लिए जमानत राशि भी सामान्य ही होती थी। दूसरा, नामांकन पत्र पर किसी अनुमोदक या प्रस्तावक के हस्ताक्षर भी जरूरी नहीं थे। ऐसे में कई लोग राष्ट्रपति के चुनाव को गंभीरता से नहीं लेते थे। एक महोदय जब फार्म भरने के लिए आए तो वे नाराज हो गए। वजह, उनसे चाय-पानी के लिए नहीं पूछा गया। उस वक्त सुभाष कश्यप वहां मौजूद नहीं थे। कुछ देर बाद जब कश्यप वहां पहुंचे तो उस व्यक्ति ने कहा, मुझे बीस मिनट हो गए हैं। कोई चाय तक नहीं पूछ रहा है। मैं देश के सर्वोच्च पद पर बैठने जा रहा हूं। इस पर सुभाष कश्यप मुस्कुरा दिए। उन्होंने कहा, आप बताएं क्या लेंगे। चाय या जूस। वह बोला, जूस मंगवा दें। उसने जूस पिया और नामांकन फार्म देकर चला गया। ऐसे ही उम्मीदवारों की बढ़ती संख्या के चलते शुरू में राष्ट्रपति चुनाव का नामांकन भरने वाले व्यक्ति के लिए दस प्रस्तावक व दस अनुमोदक के साइन लाना जरूरी किया गया।
आप हवाई जहाज से जाएं और साइन का मिलान करें
एसके शर्मा के अनुसार, बिहार से एक व्यक्ति राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के लिए नामांकन पत्र दाखिल करने पहुंचा। उस वक्त दस अनुमोदक व दस प्रस्तावक की शर्त लागू हो चुकी थी। खास बात ये थी कि वह व्यक्ति बिहार के दस-दस अनुमोदक व प्रस्तावक यानी ‘विधायकों’ के साइन लेकर आ गया था। अब यहां भी एक समस्या खड़ी हो गई। नामांकन पत्र पर विधायकों के साइन असली हैं या नकली। इसका पता कैसे लगाएं। उस व्यक्ति ने कहा, आप हवाई जहाज से जाएं और विधायकों के हस्ताक्षर के सही या गलत होने की जांच करें। ऐसी स्थिति का सामना दोबारा न हो और गंभीर प्रत्याशी ही राष्ट्रपति के चुनाव में आगे आएं, इसके लिए 50 अनुमोदकों व 50 प्रस्तावकों के हस्ताक्षर का नियम बनाया गया। मदन लाल धरती पकड़, जब उम्मीदवार थे तो उस वक्त फार्म की छंटनी हो रही थी। पी. चिदंबरम तब गृह राज्य मंत्री थे। वे वहीं पर खड़े रहे। मदन लाल ने इस पर विरोध जताया। उन्होंने कहा, चिदंबरम यहां से बाहर जाएं।
पैसे बाद में भेजे देंगे, आप नामांकन पत्र भेज दें
राष्ट्रपति चुनाव के कई रोचक किस्सों में ये भी शामिल है कि बहुत से लोग उन्हें पत्र भेजकर नामांकन पत्र मंगवाते थे। वे अपने पत्र में लिखते थे कि मैं अभी नहीं आ सकता। आप डाक से फार्म भेज दें। हम आपके पैसे ‘फीस’ पहुंचा देंगे। एसके शर्मा ने बताया, कुछ ऐसे लोगों के पत्र भी मिले, जिनमें लिखा गया कि आप ही फार्म भर दें। मैं बाद में फाइनल चेक कर लूंगा। एक लड़की ने लिखा, मैं कबड्डी की खिलाड़ी हूं, पैसे बाद में दे दूंगी। आप राष्ट्रपति चुनाव के लिए मेरा फार्म भर दें। राज्यों की विधानसभा में हुए मतदान के बाद जब बॉक्स को दिल्ली लाया जाता है, तो नब्बे के दशक में एक आदेश जारी किया गया था। सभी विधानसभा सचिवों को लिखे पत्र में कहा गया कि जब बैलेट पेटी हवाई जहाज से दिल्ली लाएं तो उसे वहां उस जगह पर न रखें, जहां यात्री अपना सामान रखते हैं। बैलेट पेपर बॉक्स को अपने सीने से लगाकर रखना है। यानी उसे अपनी सीट पर साथ रखना है। हवाई अड्डा अथॉरिटी को आदेश दिया गया कि बैलेट बॉक्स ले जानी वाली गाड़ी को उस जगह तक जाने की इजाजत मिले, जहां पर प्लेन रुकता है। साथ ही दिल्ली पुलिस को यह आदेश भी दिया गया कि ऐसी व्यवस्था की जाए ताकि बैलेट पेपर लेकर आ रहे वाहनों को रेड लाइट पर न रुकना पड़े।
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भारत के 16वें राष्ट्रपति के चुनाव के लिए वोटिंग जारी है। लोकसभा और राज्यसभा के अलावा, हर राज्य की विधानसभा में सीक्रेट बैलेट प्रक्रिया के तहत वोट डाले जा रहे हैं। वोटों की गिनती 21 जुलाई को होगी। द्रौपदी मुर्मु, एनडीए की प्रत्याशी हैं, तो वहीं यशवंत सिन्हा, विपक्ष के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव मैदान में हैं। राष्ट्रपति चुनाव के अतीत पर नजर डालें तो कई रोचक तथ्य सामने आते हैं। देश के पहले राष्ट्रपति के चुनाव में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से एक छोटी सी चूक हो गई थी। संसद भवन में जब वे वोट डालने लगे, तो उनके पैन से स्याही टपक गई। वहीं राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने के लिए एक उम्मीदवार रावण का मुकुट पहनकर नामांकन भरने पहुंचे, तो दूसरे प्रत्याशी नामांकन पत्र दाखिल करने के लिए घोड़े पर बैठकर आते थे। एक व्यक्ति तो अपनी नई नवेली दुल्हन को राष्ट्रपति चुनाव लड़ाने के लिए संसद भवन के स्वागत कक्ष पर पहुंच गया। फार्म भरने की कार्यवाही के दौरान जब दुल्हन की आयु पूछी तो वे चुपके से वापस खिसक गए।
नेहरू का पैन खराब था, तो उन्हें दूसरा मतपत्र दिया गया
लंबे समय तक लोकसभा के महासचिव रहे और संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप के साथ राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया को संपन्न करा चुके दिल्ली विधानसभा के पूर्व सचिव एसके शर्मा ने अमर उजाला डॉट कॉम से एक खास बातचीत के दौरान ऐसे कई रोचक तथ्यों से पर्दा हटाया है। एसके शर्मा के मुताबिक, देश के पहले राष्ट्रपति का चुनाव था। वोटर को पहले एक पैन दिया जाता है। उससे वे वन या टू लिखते हैं। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने अपने पैन से वन लिखा तो वहां स्याही का एक धब्बा गिर गया। कायदे से वह वोट रद्द होना चाहिए था। ऐसे में निर्वाचन अधिकारी को यह शक्ति होती है कि वह नया बैलेट पत्र जारी करे या नहीं। स्याही के धब्बे से नेहरू द्वारा दी गई वरियता दिखाई नहीं पड़ रही थी। संसद भवन में हलचल सी मच गई। हालांकि बाद में पीएम नेहरू को यह मानकर कि उनका पैन खराब था, दूसरा बैलेट पत्र दे दिया।
एक तरफ रावण का मुकुट तो दूसरी ओर घोड़े वाला
राष्ट्रपति चुनाव में काका जोगेंद्र सिंह उर्फ धरती पकड़ का नाम खासा मशहूर रहा है। हालांकि इस नाम के तीन अलग-अलग व्यक्ति रहे हैं। नागर मल बाजोरिया उर्फ काका धरती पकड़ ने कई बार राष्ट्रपति पद का बतौर निर्दलीय उम्मीदवार, चुनाव लड़ा था। वे लोकसभा और विधानसभा के अनेक चुनाव लड़ चुके थे। उन्होंने फखरूदीन अली अहमद, नीलम संजीव रेड्डी, ज्ञानी जैल सिंह और आर. वेंकटरमण के सामने चुनाव लड़ा था। वैंकटरमण के सामने चुनाव लड़ने के लिए जब वे नामांकन भरने पहुंचे तो रावण का मुकुट पहन कर आए थे। उस वक्त एसके शर्मा, निर्वाचन अधिकारी सुभाष कश्यप के सहायक के तौर पर काम कर रहे थे। भगवती प्रसाद ‘रायबरेली’, ये शख्स घोड़े पर बैठकर नामांकन दाखिल करने आते थे। अपने घोड़े को संसद भवन के बाहर कहीं बांध देते थे। भोपाल के कपड़ा व्यापारी मोहन लाल, जिन्होंने पांच विभिन्न प्रधानमंत्रियों के खिलाफ चुनाव लड़ा था, वे भी अपने नाम के साथ धरती पकड़ लिखते थे।
नई नवेली दुल्हन, राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने पहुंची
अस्सी और नब्बे के दशक में राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के लिए अनेक व्यक्ति चले आते थे। संसद भवन के स्वागत कक्ष पर फार्म मिल जाता था। एसके शर्मा उस वक्त वहीं पर मौजूद थे। एक व्यक्ति अपनी नई नवेली दुल्हन को लेकर वहां पहुंच गया। उसने कहा, राष्ट्रपति चुनाव का नामांकन फार्म दे दें। उससे पूछा गया कि आप में से कौन, राष्ट्रपति का चुनाव लड़ेगा। उस व्यक्ति ने जवाब दिया कि उनकी पत्नी चुनाव लड़ेंगी। उन्हें फार्म तो दे दिया गया। एसके शर्मा ने पूछा, आप अपनी आयु बताएं। दुल्हन शर्मा गई। स्थिति को भांपते हुए शर्मा ने कहा, देखिये मैडम राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के लिए कम से कम 35 वर्ष की आयु होना जरुरी है। इतना सुनते ही वे दोनों चुपचाप, संसद भवन से बाहर की ओर निकल गए।
मुझे चाय-पानी के लिए कोई नहीं पूछ रहा
उस दौर में राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के लिए जमानत राशि भी सामान्य ही होती थी। दूसरा, नामांकन पत्र पर किसी अनुमोदक या प्रस्तावक के हस्ताक्षर भी जरूरी नहीं थे। ऐसे में कई लोग राष्ट्रपति के चुनाव को गंभीरता से नहीं लेते थे। एक महोदय जब फार्म भरने के लिए आए तो वे नाराज हो गए। वजह, उनसे चाय-पानी के लिए नहीं पूछा गया। उस वक्त सुभाष कश्यप वहां मौजूद नहीं थे। कुछ देर बाद जब कश्यप वहां पहुंचे तो उस व्यक्ति ने कहा, मुझे बीस मिनट हो गए हैं। कोई चाय तक नहीं पूछ रहा है। मैं देश के सर्वोच्च पद पर बैठने जा रहा हूं। इस पर सुभाष कश्यप मुस्कुरा दिए। उन्होंने कहा, आप बताएं क्या लेंगे। चाय या जूस। वह बोला, जूस मंगवा दें। उसने जूस पिया और नामांकन फार्म देकर चला गया। ऐसे ही उम्मीदवारों की बढ़ती संख्या के चलते शुरू में राष्ट्रपति चुनाव का नामांकन भरने वाले व्यक्ति के लिए दस प्रस्तावक व दस अनुमोदक के साइन लाना जरूरी किया गया।
आप हवाई जहाज से जाएं और साइन का मिलान करें
एसके शर्मा के अनुसार, बिहार से एक व्यक्ति राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के लिए नामांकन पत्र दाखिल करने पहुंचा। उस वक्त दस अनुमोदक व दस प्रस्तावक की शर्त लागू हो चुकी थी। खास बात ये थी कि वह व्यक्ति बिहार के दस-दस अनुमोदक व प्रस्तावक यानी ‘विधायकों’ के साइन लेकर आ गया था। अब यहां भी एक समस्या खड़ी हो गई। नामांकन पत्र पर विधायकों के साइन असली हैं या नकली। इसका पता कैसे लगाएं। उस व्यक्ति ने कहा, आप हवाई जहाज से जाएं और विधायकों के हस्ताक्षर के सही या गलत होने की जांच करें। ऐसी स्थिति का सामना दोबारा न हो और गंभीर प्रत्याशी ही राष्ट्रपति के चुनाव में आगे आएं, इसके लिए 50 अनुमोदकों व 50 प्रस्तावकों के हस्ताक्षर का नियम बनाया गया। मदन लाल धरती पकड़, जब उम्मीदवार थे तो उस वक्त फार्म की छंटनी हो रही थी। पी. चिदंबरम तब गृह राज्य मंत्री थे। वे वहीं पर खड़े रहे। मदन लाल ने इस पर विरोध जताया। उन्होंने कहा, चिदंबरम यहां से बाहर जाएं।
पैसे बाद में भेजे देंगे, आप नामांकन पत्र भेज दें
राष्ट्रपति चुनाव के कई रोचक किस्सों में ये भी शामिल है कि बहुत से लोग उन्हें पत्र भेजकर नामांकन पत्र मंगवाते थे। वे अपने पत्र में लिखते थे कि मैं अभी नहीं आ सकता। आप डाक से फार्म भेज दें। हम आपके पैसे ‘फीस’ पहुंचा देंगे। एसके शर्मा ने बताया, कुछ ऐसे लोगों के पत्र भी मिले, जिनमें लिखा गया कि आप ही फार्म भर दें। मैं बाद में फाइनल चेक कर लूंगा। एक लड़की ने लिखा, मैं कबड्डी की खिलाड़ी हूं, पैसे बाद में दे दूंगी। आप राष्ट्रपति चुनाव के लिए मेरा फार्म भर दें। राज्यों की विधानसभा में हुए मतदान के बाद जब बॉक्स को दिल्ली लाया जाता है, तो नब्बे के दशक में एक आदेश जारी किया गया था। सभी विधानसभा सचिवों को लिखे पत्र में कहा गया कि जब बैलेट पेटी हवाई जहाज से दिल्ली लाएं तो उसे वहां उस जगह पर न रखें, जहां यात्री अपना सामान रखते हैं। बैलेट पेपर बॉक्स को अपने सीने से लगाकर रखना है। यानी उसे अपनी सीट पर साथ रखना है। हवाई अड्डा अथॉरिटी को आदेश दिया गया कि बैलेट बॉक्स ले जानी वाली गाड़ी को उस जगह तक जाने की इजाजत मिले, जहां पर प्लेन रुकता है। साथ ही दिल्ली पुलिस को यह आदेश भी दिया गया कि ऐसी व्यवस्था की जाए ताकि बैलेट पेपर लेकर आ रहे वाहनों को रेड लाइट पर न रुकना पड़े।