नवरात्र पर विशेष : करोड़ों श्रद्धालुओं दल की आस्था का केंद्र है शाकंभरी देवी मंदिर,,, ये है मान्यता

मंदिर गृभ गृह में स्थित मां शाकंभरी, भीमा, भ्रांबरी व शताक्षी देवी की प्रतिमाएं।

(भवानी सैनी की रिर्पोट)

बेहट। जनपद मुख्यालय से उत्तर दिशा में लगभग 45 किमी दूर शिवालिक पहाड़ियों में सिद्धपीठ श्री शाकंभरी देवी मंदिर लाखों श्रद्धालओं की आस्था का केन्द्र हैं। मान्यता है कि यहां शीश नवानें वाले भक्त सर्वसुख संपन्न हो जाते हैं। सिद्धपीठ श्री शाकंभरी देवी का उल्लेख मार्कण्डेय पुराण, दुर्गा सप्तसती, पदम पुराण, कनक धारा स्रोत आदि में मिलता है। मंदिर गर्भ गृह में मां शाकंभरी के साथ भीमा देवी, भ्राबंरी व शताक्षी देवी सहित गणेश जी की प्रतिमा भी मौजूद है। इस पावन तीर्थ के निकट गौतम ऋषि की गुफा, प्रेतशिला पंच महादेव के रूप में बड़केश्वर महादेव, मटकेश्वर महादेव, शाकेश्वर महादेव, कमलेश्वर महादेव, मटकेश्वर महादेव के भव्य मंदिरों के अलावा भूरादेव मंदिर, छिन्नमिस्ता देवी मंदिर, रक्त दंतिका मंदिर आदि पवित्र स्थल स्थित है। यहां भी श्रद्धालु भारी संख्या में पहुंचकर प्रसाद चढ़ाकर मनोकामनाएं मांगते है। इसके अलावा सिद्धपीठ परिक्षेत्र से लगभग 5 किमी दूर पहाड़ियों पर संहस्रा ठाकुर का मंदिर भी स्थापित है। यह मंदिर प्राचीन काल में एक ही पत्थर तराश कर बनाया गया है। मुख्य मंदिर के निकट वीर खेत के नाम से प्रसिद्ध एक मैदान है। इसके बारे में मान्यता है कि यहां माता एवं दैत्यों के बीच घोर युद्ध हुआ था। बताया जाता है कि इसी मैदान पर माता ने महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था। इसी मैदान पर राणा परिवार जसमौर के पुरूखों की समाधियां भी बनी हुई है।

शाक से देवताओं की भूख मिटाकर कहलायी मां शाकंभरी

मां भगवती का नाम शाकंभरी देवी प्रचलित होने के बारे में मान्यता है कि प्राचीन काल में दुर्गम नामक दैत्य ने ब्रहमा जी की घोर तपस्या कर वरदान में चारों वेद मांग लिये। दैत्यों के हाथ चारों वेद लगने से सभी वैदिक क्रियाएं लुप्त हो गई। परिणाम स्वरूप 100 वर्षों तक वर्षा नहीं हुई। जिसके कारण तीनों लोकों में अकाल पड़ गया। त्राहि-त्राहि मचने पर देवताओं ने शिवालिक पर्वत श्रंखला की प्रथम शिखा पर मां जगदंबा की घोर तपस्या की। देवताओं की करूण पुकार सुनकर करूणामयी मां भगवती से रहा नहीं गया और वह देवताओं के समक्ष प्रकट हो गई। व्याकुल देवताओं ने उनसे तीनों लोकों का अकाल मिटाने की प्रार्थना की। इस पर मां जगदंबा ने अपने शत नेत्रों से नौ दिन एवं नौ रात तक अश्रुवृष्टि की। इससे सूखी धरा तृप्त हो गई। सभी सागर एवं नदियां जल से भर गई। तभी से नवरात्रों की पूजा का प्रावधान बना और मां जगदंबा को शताक्षी कहा जाने लगा। करूणामयी मां भगवती ने देवताओं की भूख मिटाने के लिए अपनी शक्ति से पहाड़ियों पर शाक, फल उत्पन्न किये। जिसके बाद माता शाकंभरी कहलायी।

सरल है मां शाकंभरी का प्रमुख प्रसाद

सिद्धपीठ श्री शाकंभरी देवी मंदिर पर हलवा पूरी, इलायची-दाना, मेवे और मिष्ठान का का प्रसाद चढ़ाया जाता है। हालंाकि मान्यता है कि वेदों में सिद्धपीठ श्री शांकभरी देवी का प्रमुख प्रसाद सराल बताया गया है। जो शिवालिक पहाड़ियों पर ही अक्सर पाया जाता है। मान्यता है कि देवताओं की भूख मिटाने के मां शाकंभरी देवी शाक-सराल आदि फल उत्पन्न किये थे। जिसमें सराल का प्रसाद प्रमुख माना जाता है। वर्तमान में मां भगवती के काफी भक्त सराल का प्रसाद चढ़ाते हैं। मेला परिक्षेत्र में कुछ ग्रामीण सराल बेचते भी दिखायी देते हैं।

बाबा भूरादेव की महत्ता

मां के दर्शनों से पहले बाबा भूरादेव की महत्ता
जनश्रुति है कि देवताओं एवं दैत्यों के बीच चल रहे युद्ध के दौरान धर्म की रक्षा के लिए मां भगवती का परम भक्त भूरादेव अपने साथियों के साथ युद्ध में उतरा था। युद्ध के दौरान अपने भक्त भूरादेव को घायल देखकर करूणामयी माता ने भूरादेव को वचन दिया था कि जो भक्त मेरे दर्शन से पूर्व भूरादेव के दर्शन नहीं करेगा उसकी यात्रा पूर्ण नहीं होगी। यही कारण है कि आज भी भारी संख्या में श्रद्धालु भूरादेव मंदिर पर प्रसाद चढ़ाने के बाद ही मां शाकंभरी देवी के दर्शन कर प्रसाद चढ़ाते हैं।

शारदीय नवरात्र मेले की शुरूआत

आज से है शारदीय नवरात्र मेला
शुक्रवार से चैत्र नवरात्र पर्व प्रारंभ हो रहे हैं। इस अवसर पर सिद्धपीठ श्री शाकंभरी देवी मंदिर परिक्षेत्र में भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। नवरात्र पर्व पर लगने वाला यह मेला प्रथम नवरात्र से लेकर चर्तुदशी पर्व तक चलता है। जिसमें यूपी के अलावा दिल्ली, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तराचंल, हिमाचल आदि प्रदेशों के श्रद्धालु भारी संख्या में पहुंचकर मां शाकंभरी देवी को प्रसाद चढ़ाकर मन्नतें मांगते है। इस दौरान समूची शिवालिक घाटी श्रद्धालुओं द्वारा लगाये गये माता के गगनभेदी जयकारों से गुंजायमान हो उठती है।

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