नेपाल में वामपंथी सरकार के 17 साल, 15 प्रधानमंत्री, 16वीं पीएम बनी सुशीला कार्की

नेपाल नरेश को पदच्युत कर वर्ष 2008 में वामपंथियों ने हथियाई थी सत्ता

चित्र संख्या। 0054 नेपाल प्रधानमंत्री सुशीला कार्की

राहुल उपाध्याय नबी अहमद

Nepal news । नेपाल में वामपंथियों ने नेपाल नरेश को पदच्युत करने के लिए 90 के दशक से ही रणनीति बनाना शुरू कर दिया था। लेकिन वह अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पा रहे थे। वर्ष 2001 में नेपाल राजवंश के नरसंहार के बाद वामपंथी धीरे-धीरे अपने मकसद में कामयाब होने लगे। हालांकि फिर राजतंत्र आया। लेकिन वामपंथी अपने मकसद को पूरा करने के लिए दिन रात संगठन का विस्तार करने लगे। समूचे नेपाल में लूटपाट और सुरक्षा बलों पर हमला कर नेपाल प्रशासन को हिला दिया। आखिरकार वर्ष 2008 में नेपाल नरेश ज्ञानेंद्र वीर विक्रमदेव शाह को वामपंथियों के दबाव के चलते गद्दी छोड़नी पड़ी।
नेपाल में वामपंथी राजशाही के खिलाफ लंबे समय से आंदोलन कर रहे थे। कई बार राजशाही को विफल करने के लिए वामपंथियों ने बड़े हमले किए। 13 फरवरी 1996 में वामपंथियों ने रुकुम जिला मुख्यालय पर बड़ा हमला बोला था। जिसमें 40 से अधिक पुलिस कर्मियों को गोली मार दी थी। समूचे नेपाल में इस घटना को लेकर तरह तरह की चर्चाएं होने लगी। लेकिन तत्कालीन राजा वीरेंद्र विक्रम शाह देव ने उनको विफल कर दिया था। इस बीच वामपंथियों ने अपने संगठन को मजबूत करने के लिए पहाड़ से लेकर तराई इलाकों तक लोगों को राजा के प्रति भड़काया और उन्हें अपने संगठन में शामिल करने लगे इससे वामपंथियों की ताकत और बढ़ने लगी वामपंथियों ने हथियार गोला बारूद की जरूरत पूरी करने के लिए नेपाल के बड़े व्यापारियों के साथ बैंकों में भी लूटपाट की।इसके बाद जब वह हथियारों से मजबूत हो गए तो उनके हमले और तेज हो गए। वामपंथी अधिकतर पुलिस कर्मियों को ही अपना निशाना बनाते थे। जिससे नेपाल में अशांति फैल गई थी। नेपाल का पर्यटन उद्योग ठप हो चुका था। कृषि, पर्यटन पर आधारित अर्थ व्यवस्था भी चौपट हो चुकी थी।नेपाल का नेपाल का प्राकृतिक सौंदर्य और आतिथ्य साहसी और आध्यात्मिक साधकों को अपनी ओर आकर्षित करता रहता था। लेकिन लोग नेपाल में व्याप्त माओवादी हिंसा के चलते कम रुक करने लगे। जिससे नेपाल की अर्थ व्यवस्था पर गहरी चोट लगी। नेपाल नरेश की वर्ष 2001 में हत्या के बाद वामपंथी काफी उग्र हो गए थे। हालांकि नरेश की हत्या के बाद उनके भाई ज्ञानेंद्र वीर विक्रम सहदेव ने गद्दी संभाली। लेकिन वामपंथियों के सामने अधिक समय तक टिक न सके। वर्ष 2008 में उन्हें गद्दी छोड़नी पड़ी। इसके बाद शुरू हुआ वामपंथियों का दौर। नेपाल के आम चुनाव में वामपंथियों को बहुमत मिला। वामपंथी दल के उग्र नेता के रूप में जाने जाने वाले पुष्प कमल दहल प्रचंड को पहला प्रधानमंत्री चुना गया। लेकिन वामपंथियों की यह साझा सरकार थी। जिसके चलते प्रचंड मात्र 11 महीने तक ही टिक सके। इसके बाद माधवकुमार नेपाल, झालानाथ खनाल, बाबूराम भट्टराई, खिलराज रेगमी, सुशील कोइराला,केपी शर्मा ओली, फिर पुष्प कमल दहल, शेर बहादुर देउवा, फिर केपी शर्मा ओली, दो बार लगातार,शेर बहादुर देउवा, पुष्प कमल दहल के बाद फिर केपी शर्मा ओली,16वीं सुशीला कार्की प्रधानमंत्री बनी है। इस प्रकार 17 वर्ष के भीतर वामपंथियों की सरकार में 16 प्रधानमंत्री बनाए गए हैं। जिसको लेकर राजनीतिक अस्थिरता लगातार बनी रही। यही कारण है कि नेपाली आवाम उग्र हो गया है और इन दिनों सड़कों पर आंदोलनरत है।

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