महिलाएं आगे-युवा जागे, मतदान के बदले समीकरण को समझने में जुटे दल
रिकॉर्ड वोटिंग में छिपा जनमत का इशारा-सत्ता पर भरोसा बरकरार या बदलाव की चाह
संजय सिंह
Bihar election 2025 । बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में 18 जिलों की 121 सीटों पर संपन्न हुए मतदान की हर तरफ चर्चा है। सियासी गलियारों, राजनीतिक विश्लेषकों से लेकर चौराहों, चाय की दुकानों और गांव की बैठकों में इसके मायने तलाशे जा रहे हैं। लगभग 3.75 करोड़ मतदाताओं में से 64.66 प्रतिशत लोगों ने वोट डाला, जो अब तक का रिकॉर्ड है।
इस बंपर वोटिंग ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। सामान्य तौर पर बढ़ी वोटिंग को सत्ता-विरोधी लहर माना जाता रहा है। लेकिन, पिछले कुछ चुनावों ने इस धारणा को बदल दिया है। हर बार अधिक मतदान का मतलब एंटी इंकम्बेंसी नहीं होता है। इसे प्रो इंकम्बेंसी के तौर पर भी देखा गया है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा की दो सरकारों के कार्यकाल में अधिक मतदान के बाद भी सत्ता में बदलाव नहीं हुआ। वहीं बिहार में ही 2015 में 2010 की तुलना में 4.18 प्रतिशत अधिक वोट पड़े थे, लेकिन नीतीश कुमार फिर सत्ता में आए। हालांकि तब राजद और कांग्रेस महागठबंधन का हिस्सा थे।
पार्टी और जाति मिथक से बाहर उम्मीदवार की छवि पर भी वोट
जानकारों के अनुसार, पर इस बार नीतीश सरकार के खिलाफ हल्की नाराजगी तो दिखाई दी। लेकिन, कोई बड़ी एंटी-इनकम्बेंसी लहर नजर नहीं आई। इसलिए वोटिंग प्रतिशत बढ़ने के पीछे अन्य सामाजिक और राजनीतिक कारण भी हो सकते हैं। बिहार का चुनाव इस बार इसलिए भी अहम है, क्योंकि माना जा रहा है कि पहले चरण के मतदान में पारंपरिक जातीय गोलबंदियों का पहले की तरह प्रभाव नहीं दिखा। मतदाता इससे बाहर निकलते नजर आए। उन्होंने पारंपरिक तौर पर सिर्फ पार्टी आधार पर वोट नहीं डाला बल्कि, क्षेत्रीय सामाजिक समीकरणों और उम्मीदवार को देखते हुए भी मतदान किया।
इस दांव की वजह से महिला मतदाताओं में दिखा जोश
इस बार महिलाओं की भागीदारी ऐतिहासिक रही। सुबह से ही लंबी कतारों में महिलाएं वोट देने पहुंचीं। एनडीए समर्थकों का मानना है कि सरकार की आर्थिक योजनाओं और महिला सशक्तीकरण कार्यक्रमों ने उनमें जागरूकता बढ़ाई। दरअसल इस बार पार्टियों ने महिला मतदाताओं पर शुरुआत से ही खास फोकस किया गया। एनडीए की ओर से जीविका योजना से जुड़ी 1.41 करोड़ दीदियों को पहले ही 10,000 रुपये की सीड मनी दे दी गई। माना जा रहा है कि इसकी वजह से महिलाओं में काफी जोश देखने को मिला और इसका फायदा एनडीए खेमे को मिल सकता है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने वादा किया है कि बचे हुए लाभार्थियों के खाते में यह राशि दिसंबर तक पहुंचा दी जाएगी। इसके अलावा जीविका दीदियों को समूह बनाने और रोजगार के लिए 2 लाख रुपये तक की अतिरिक्त सहायता राशि देने का वादा किया गया है। हालांकि इसके जवाब में तेजस्वी यादव ने जीविका दीदियों को 30 हजार रुपये महीना वेतन देने की घोषणा की है। इसके अलावा उनके लिए स्थाई नौकरी, अतिरिक्त काम करवाने पर दो हजार रुपये अतिरिक्त मानदेय, लोन पर ब्याज माफी और 5 लाख तक का बीमा कवर देने का वादा करते हुए महिला मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की गई है।
वोट चोरी बहस का भी दिखा असर
ये भी माना जा रहा है कि राजनीतिक अभियानों में राहुल गांधी के उठाए गए वोट चोरी के मुद्दे ने भी जनता को मतदान के लिए प्रेरित किया। वोटर अधिकार यात्रा और दलों के लगातार प्रचार ने लोगों में वोट की सुरक्षा और भागीदारी की चेतना पैदा की। राजनीतिक जानकारों के अनुसार, इस बार विशेष प्रगाढ़ पुनरीक्षण (एसआईआर) ने भी जन-जागरूकता में नया जोश भरा है। राज्य में लगभग 65 लाख निष्क्रिय नाम हटाने का असर मतदान में देखाा गया। इसके अलावा युवाओं और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग ने भी रिकॉर्ड वोटिंग में अहम भूमिका निभाई। नीतीश कुमार के खिलाफ सीमित असंतोष के बावजूद उनके पारंपरिक वोटरों में वोट करने की नई सक्रियता देखी गई।
पहली बार इतनी बंपर वोटिंग की एक वजह नहीं
सियासी जानकारों के अनुसार इतिहास में पहली बार इतने अधिक मतदान प्रतिशत की कोई एक वजह नहीं कही जा सकती है। इसके न सिर्फ अलग अलग कारण हैं बल्कि क्षेत्रवार भी अलग वजह हो सकती हैं। पहले चरण में मतदान का प्रतिशत बढ़ने को विशेष मतदाता पुनरीक्षण के दौरान वोटरों की कम हुई संख्या से भी जोड़कर देखा जा रहा है।दरअसल 2020 के विधानसभा चुनाव में मतदाताओं की कुल संख्या 7.89 करोड़ थी और 57.29 प्रतिशत वोटिंग हुई। वहीं विशेष मतदाता पुनरीक्षण के दौरान मृत, अनुपस्थित एवं दो जगहों से नाम वाले मतदाताओं की छंटनी के बाद 7.42 करोड़ मतदाता बच गए। इसी पुनरीक्षित सूची के अनुसार मतदान हो रहा है। इस बार करीब 65 प्रतिशत मतदान का आंकड़ा पुनरीक्षित मतदाता सूची के आधार पर हुई वोटिंग का है। सही आंकड़ा दूसरे चरण के मतदान के बाद सामने आएगा कि वोटरों की संख्या कम होने के कारण 2020 के विधानसभा चुनाव की तुलना में कितने कम या अधिक वोट पड़े।
दूसरे चरण के मतदान के बाद तस्वीर होगी साफ
एनडीए और महागठबंधन दोनों ओर से मतदाताओं को अपने पाले में करने के लिए रणनीति को धरातल पर उतारा गया है। एनडीए समर्थक जहां सत्ता परिवर्तन की संभावना नहीं के अपने दावे पर अड़े हुए हैं। वहीं दूसरा खेमा जन-जागरूकता और लोकतांत्रिक सहभागिता के नए दौर का हवाला देते हुए इसे अपने पक्ष की हवा बता रहा है। महिलाओं, युवाओं और सामाजिक वर्गों की संयुक्त भागीदारी ने बिहार की राजनीति को नई परिभाषा दी है, इसका भी दावा किया जा रहा है। हालांकि दूसरा चरण के मतदान बेहद अहम होगा और ये देखना होगा कि उसमें भी इसी तरह का जोश और मुद्दों ने असर किया या नहीं। दूसरे चरण के लिए एनडीए ने अपनी रणनीति में बदलाव भी किया है। इसकी वजह पहले चरण के मतदान में जातीय गोलबंदी का पूरी तरह से कारगर नहीं होना बताया जा रहा है। इसके साथ ही मुस्लिम वोट महागठबंधन के पाले में होने के भी दावे किए जा रहा हें।
सियासी दलों और विश्लेषकों की अपनी-अपनी राय के बीच मतगणना के दिन सामने आएगा कि यह बढ़ी वोटिंग किसके पक्ष में मीठा फल लाती है।








