भागवत कथा के समापन दिवस पर भागवताचार्य ने यह सुंदर प्रसंग,,

रिपोर्ट बबलू सेंगर

Jalaun news today । जालौन नगर के मोहल्ला जोशियाना स्थित लल्ला तिवारी के आवास पर चल रही सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के समापन पर भागवताचार्य सुखनंदन मयूर ने सुदामा चरित और राजा परीक्षित मोक्ष के प्रसंग का वर्णन किया।
भागवताचार्य सुखनंदन मयूर ने बताया कि भक्ति और मित्रता का सर्वाेच्च उदाहरण सुदामा और श्रीकृष्ण का संबंध है। गरीबी में जीवन व्यतीत कर रहे सुदामा के मन में लोभ या अपेक्षा का कोई स्थान नहीं था। जब वे द्वारका श्रीकृष्ण से मिलने पहुंचे, तो उनके साथ केवल चावल की मुट्ठी भर पोटली थी, परंतु हृदय में अनंत प्रेम भरा था। जब भगवान श्रीकृष्ण ने अपने बाल सखा सुदामा को देखा, तो वे स्वयं दौड़ते हुए द्वार तक आए और बड़े आदर से उनका स्वागत किया। भगवान द्वारा सुदामा के पैर धोने, उन्हें सिंहासन पर बैठाने और विनम्रता से बातें करने का वर्णन करते ही कथा स्थल में उपस्थित भक्त भावुक हो उठे। बताया कि सुदामा चरित हमें सिखाता है कि भगवान को हमारे धन, वस्तु या वैभव की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि वह तो प्रेम, भाव और सच्चे हृदय से प्रसन्न होते हैं। राजा परीक्षित मोक्ष का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि परीक्षित को श्राप के कारण सातवें दिन तक्षक नाग के विष से मृत्यु निश्चित थी। ऐसे समय में उन्होंने भय, मोह और चिंताओं से दूर होकर श्रीशुकदेव जी के मुखारविंद से भागवत कथा का श्रवण किया। सात दिनों तक निरंतर कथा सुनते-समझते हुए उन्होंने अपने भीतर वैराग्य, ज्ञान और भक्ति का भाव विकसित किया। राजा परीक्षित का मोक्ष यह संदेश देता है कि मृत्यु का भय केवल ज्ञान और भक्ति से दूर हो सकता है। इस मौके पर पारीक्षित कुसुमलता, उदयनारायण तिवारी, चंदा दुबे, पुरूषोत्तम दुबे, किरन शर्मा, सुनील शर्मा, रविंद्र, धर्मेंद्र, रायमशरण, रामनरेश, मुकेश, अखिलेश, राजेश, प्रतापनारायण तिवारी, विश्वजीत, चंदन, अंजनी, शिवम, सत्यम, चंचल, आलोक, हरिओम आदि मौजूद रहे।