(रिपोर्ट – बबलू सेंगर)

Jalaun news today । रेबीज के बारे में जागरूकता पैदा करने और लोगों को इस घातक बीमारी से बचाने के लिए हर साल 28 सितंबर को दुनिया भर में रेबीज दिवस मनाया जाता है। यह दिन फ्रांसीसी रसायनज्ञ और सूक्ष्म जीवविज्ञानी लुई पाश्चर की पुण्यतिथि का प्रतीक है, जिन्होंने 1885 में पहली रेबीज वैक्सीन विकसित की थी। आज यह वैक्सीन जानवरों और इंसानों के लिए अहम भूमिका निभा रही है। इसके इस्तेमाल से इंसानों में रेबीज के खतरे को कम किया जा सकता है। यह बात विश्व रेबीज दिवस पर पूर्व सीएमओ डॉ. एमपी सिंह ने कही।
विश्व रेबीज दिवस पर महान क्लीनिक में जागरूकता गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें पूर्व सीएमओ डॉ. एमपी सिंह ने बताया कि रेबीज दिवस हर साल एक नई थीम के साथ मनाया जाता है और इस साल की थीम ऑल फॉर वन, वन हेल्थ फॉर ऑल है। बताया कि डब्ल्यूएचओ के अनुसार, लस्सा वायरस से संक्रमित जानवर के काटने से मनुष्यों में रेबीज का संक्रमण होता है। यह एक जूनोटिक बीमारी है जो संक्रमित बिल्लियों, कुत्तों और बंदरों के काटने से इंसानों में फैल सकती है। इससे मस्तिष्क में सूजन भी हो सकती है। कुत्ता, बिल्ली अथवा बंदर के काटने पर घाव पर मिर्च, तेल व अन्य ज्वलनशील पदार्थ लगाने से बचना चाहिए। ऐसे अंधविश्वास से दूरी बनना चाहिए। डॉ. हरेंद्र सिंह ने बताया कि कुत्ते, बिल्ली या बंदर के काटने पर डॉक्टर के पास जाने से पहले घाव को अच्छी तरह से साबुन और पानी से धो लें। घाव पर जलन पैदा करने वाली चीजों को लगाने से बचें। यह सोचकर ज्यादा खून न बहाएं कि खून के साथ वायरस निकलेगा। इसके साथ ही घाव की सिलाई न करें। ऐसा करने से वायरस नर्व से रीढ़ की हड्डी तक जा सकता है। सरकारी अस्पतालों में एंटी रेबीज का टीका निशुल्क लगता है। उपचार के दौरान सावधान रहें, किसी भी तरह के नशे का सेवन न करें। डॉक्टर की सलाह के बाद ही एंटी रेबीज का टीका लगवाना चाहिए। इस मौके पर पप्पू शिवहरे, राघवेंद्र, मोहम्मद इकबाल आदि मौजूद रहे।
