रिपोर्ट बबलू सेंगर
Jalaun news today । ऐतिहासिक व्यक्ति आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत होते हैं। उनकी स्मारक लोगों को इतिहास से परिचित कराते हैं। इसलिए नगर की गौरव रही ताई बाई कर प्रतिमा नगर के देवनगर चौराहे पर लगाई ही जानी चाहिए। यह बात पूर्व आईपीएस नरेंद्र प्रताप सिंह ने पत्रकारों से वार्ता के दौरान कही।
पूर्व विधायक चौधरी गरीब दास के आवास पर आयोजित एक बैठक में पूर्व आईपीएस नरेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि स्वतंत्रता पूर्व जालौन एक राज्य रहा है। सन् 1840 में महाराजा गोविंदराव की मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने जालौन राज्य को ईस्ट इंडिया कंपनी में मिलाने की घोषणा कर दी। लेकिन जालौन राज्य की जनता और जालौन राज्य की अंतिम शासिका ताईबाई ने इस विलय को स्वीकार नहीं किया। बिठूर के पेशवा नाना धुंधू पंतज ने तात्या टोपे को भेजकर पेशवाई के अधिकार से नाना गोविंद राव की नातिन ताई बाई के पांच वर्षीय पुत्र गोविंदराव को जालौन राज्य का राजा घोषित कर दिया और उनके संरक्षक के रूप में ताई बाई को शासन चलाने की जिम्मेंदारी सौंपी गई। ताई बाई ने जालौन राज्य में स्वतंत्र का्रंतिकारी सरकार की घोषणा कर दी। अंग्रेजों को यह बर्दाश्त नहीं हुआ और 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में ताईबाई ने डटकर अंग्रेजों का मुकाबला किया। लेकिन अंग्रेजों के संसाधानों के आगे उन्हें पराजित होना पड़ा। इसके बाद भी उन्होंने अंग्रेजों की दासता स्वीकार नहीं की। जिसके बाद अंग्रेजों ने उन्हें बिहार की मुंगेर जेल में जीवन पर्यंत के लिए भेज दिया। 1870 में जेल में ही उनकी मृत्यु हुई। वहीं, अंग्रेजों ने जालौन भव्य किले को नष्ट कर दिया। किले को खोदकर तत्कालीन अंग्रेज अफसर पीजे व्हाइट ने व्हाइट गंज बाजार बना दिया जिसे अब बैठगंज कहते हैं। कहा कि जालौन राज्य के लिए जान देने वाली क्रांतिकारी शासिक का अंग्रेजों ने इतिहास में स्थान नहीं दिया। लेकिन अब उन्हें याद किए जाने की आवश्यकता है। ताकि आने वाली पीढ़ियां उनसे पराक्रम से परिचित हो सकें।
ऐसे में नगर के देवनगर चौराहे पर न सिर्फ उनकी प्रतिमा लगाई जाए बल्कि उनके ऐतिहासिक पराक्रम से भी लोगों को परिचित कराया जाए। बैठक का संचालन कैलाश पाटकार ने किया। इस मौके पर बौद्धिक काउंसिल ग्रुप के अध्यक्ष वाचस्पति मिश्रा, महेंद्र प्रताप सिंह, बुंदेलखंड मुक्ति मोर्चा के जिलाध्यक्ष प्रदुम्न दीक्षित, एके त्रिवेदी, भगवती प्रसाद मिश्रा, योगेंद्र राठौर शशिकांत आदि मौजूद रहे।