50 तक छात्र नामांकित वाले विद्यालयों में तीन शिक्षकों की तैनाती अनिवार्य
Lucknow News : बेसिक शिक्षा राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) संदीप सिंह ने कहा कि प्रदेश में विद्यालयों की पेयरिंग की प्रक्रिया का मकसद छात्रों के हित को ध्यान में रखते हुए शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाना है। पेयरिंग का मतलब किसी भी विद्यालय को बंद करना कतई नहीं है। न ही कोई पद कम या फिर खत्म किया जा रहा है। कुछ जिलों में इस प्रक्रिया को लेकर आई शिकायतों को गंभीरता से लिया गया है और जहां जरूरी था, वहां विद्यालयों में पूर्ववत संचालन के आदेश दिए गए हैं। पेयर होने वाले किसी भी प्राथमिक विद्यालय की दूरी एक किलोमीटर से अधिक नहीं होगी।
विद्यार्थियों की संख्या बढ़ने पर पुराने भवन में फिर से शुरू होंगी कक्षाएं
संदीप सिंह ने गुरुवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि हमने किसी भी विद्यालय को स्थायी रूप से पेयर नहीं किया है। अगर कहीं बैठने की असुविधा होगी या बच्चों की संख्या बढ़ेगी तो पुराने भवन में फिर से संचालन की व्यवस्था की जाएगी। UDISE कोड यथावत रहेगा। हमारा यह भी प्रयास है कि 15 अगस्त तक कोई भी विद्यालय खाली न रहे। सभी विद्यालयों में प्री प्राइमरी और बाल वाटिका संचालित हो जाएं।
पेयरिंग से छात्रों को संवाद, समूह कार्य, खेल व प्रोजेक्ट आधारित मिलेगी शिक्षा
मंत्री ने यह भी कहा कि पेयरिंग, बच्चों को बेहतर अधिगम वातावरण और संसाधनों से जोड़ने की दिशा में एक ठोस पहल है। अत्यल्प नामांकन वाले विद्यालयों में बच्चों को शिक्षा का वास्तविक अनुभव नहीं मिल पाता। कक्षा में संवाद, पियर लर्निंग, समूह कार्य, खेलकूद, प्रोजेक्ट गतिविधियां जैसे जरूरी पहलू प्रभावित होते हैं। जब इन बच्चों को समेकित रूप से पर्याप्त नामांकन वाले विद्यालयों से जोड़ा जाता है, तो उन्हें शिक्षा का पूर्ण वातावरण मिल पाता है।
पेयरिंग से बेहतर होगी शिक्षकों की उपलब्धता
पेयरिंग की प्रक्रिया के माध्यम से प्रत्येक कक्षा के लिए शिक्षक की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सकेगी। शिक्षक-छात्र अनुपात बेहतर होगा और शिक्षकों को नवीनतम शिक्षण तकनीकों का उपयोग करने का अवसर मिलेगा। इससे शिक्षण गुणवत्ता बढ़ेगी और बच्चों में आत्मविश्वास व भागीदारी की भावना भी विकसित होगी।
स्मार्ट क्लास और ICT लैब्स की व्यवस्था
संदीप सिंह ने कहा कि अधिक नामांकन वाले विद्यालयों को स्मार्ट क्लास, ICT लैब, अतिरिक्त कक्ष, कम्पोजिट ग्रांट, टीएलएम और खेल सामग्री जैसी सुविधाएं प्राथमिकता के आधार पर मिलेंगी। इससे बच्चों के शैक्षिक अनुभव को तकनीक और संसाधनों से समृद्ध किया जा सकेगा।
भवनों का पुनः उपयोग: आंगनबाड़ी और बालवाटिकाएं बनेंगे केंद्र
रिक्त हुए भवनों का भी रचनात्मक उपयोग किया जाएगा। इन भवनों में बालवाटिकाएं और आंगनबाड़ी केंद्र संचालित किए जाएंगे। पूर्व-प्राथमिक शिक्षा को मजबूत करने की दिशा में यह एक सार्थक पहल होगी, जिसमें बच्चों को मानसिक रूप से कक्षा-1 के लिए तैयार किया जाएगा। बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण संबंधी गतिविधियों का संचालन समन्वित विभागीय सहयोग से किया जाएगा।
बाधित क्षेत्रों को पेयरिंग से छूट
मंत्री ने कहा कि पेयरिंग करते समय विद्यालय तक बच्चों की पहुंच सरल, सुगम और सुरक्षित हो, इसका पूरा ध्यान रखा गया है। जिन विद्यालयों की भौगोलिक स्थिति, जैसे नदियां, रेलवे क्रॉसिंग या हाईवे आदि से बाधित हो सकती थी, उन्हें इस प्रक्रिया में शामिल नहीं किया गया है। किसी भी प्रकार की विसंगति की स्थिति में तत्काल समाधान सुनिश्चित किया जा रहा है।
किसी भी पद को नहीं किया जाएगा समाप्त
शिक्षकों और रसोइयों की भूमिका इस प्रक्रिया में यथावत रहेगी। किसी भी पद को समाप्त नहीं किया जा रहा है। बल्कि इस योजना के अंतर्गत यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि जहां 50 तक छात्र नामांकित हैं, वहां तीन शिक्षकों की अनिवार्य तैनाती की जाएगी। 50 से अधिक नामांकन वाले विद्यालयों में निर्धारित मानकों के अनुरूप शिक्षकों की व्यवस्था की जा रही है।
जर्जर भवनों को ध्वस्त करने की कार्रवाई
शिक्षा की सुरक्षा और गुणवत्ता के दृष्टिकोण से सभी विद्यालय भवनों का सेफ्टी ऑडिट कराया जा रहा है। जर्जर भवनों की पहचान कर उन्हें ध्वस्त करने की कार्रवाई भी शुरू हो गई है। इसके साथ ही विद्यालयों में बाल-मैत्रिक फर्नीचर, खेल सामग्री, लर्निंग कॉर्नर, वॉल सज्जा, वंडर बॉक्स और अन्य शिक्षण सामग्री उपलब्ध कराई जा रही है।
पूर्ववर्ती बनाम वर्तमान सरकार
मंत्री ने कहा कि पूर्ववर्ती सरकार ने शिक्षा व्यवस्था को स्ट्रेचर पर ला दिया था। लेकिन, हमारी सरकार ने बीते वर्षों में शिक्षा के क्षेत्र में बुनियादी सुधार किए हैं। अब तक 1.26 लाख से अधिक शिक्षकों की नियुक्ति हो चुकी है। ऑपरेशन कायाकल्प के अंतर्गत 96% परिषदीय विद्यालयों को मूलभूत सुविधाओं से लैस किया गया है। इन सुधारों को नीति आयोग ने भी एक अनुकरणीय मॉडल के रूप में स्वीकार किया है।
एकीकृत शिक्षा मॉडल: मुख्यमंत्री मॉडल कम्पोजिट विद्यालय का विकास
प्रदेश के सभी जनपदों में मुख्यमंत्री मॉडल कम्पोजिट विद्यालय विकसित किए जा रहे हैं, जो आधुनिकतम सुविधाओं से युक्त होंगे और जहां प्री-प्राइमरी से लेकर कक्षा 12 तक की शिक्षा एकीकृत रूप से दी जाएगी। इसी क्रम में चयनित विद्यालयों को स्मार्ट क्लास, ICT लैब, डिजिटल लाइब्रेरी, साइंस-मैथ लैब और खेल सामग्री जैसी सुविधाएं दी जा रही हैं।
DBT से छात्रों को सीधा लाभ: यूनिफॉर्म से लेकर स्टेशनरी तक 1200
प्रदेश के कक्षा 1 से 8 तक के सभी छात्रों को यूनिफॉर्म, बैग, स्वेटर, जूते-मोजे और स्टेशनरी के लिए 1200 की राशि DBT के माध्यम से उनके बैंक खातों में भेजी जा रही है। इस वर्ष अब तक 1200 करोड़ से अधिक की राशि स्थानांतरित की जा चुकी है।
डिजिटल और स्मार्ट शिक्षा: टैबलेट, स्मार्ट क्लास, ICT लैब की सुविधा
परिषदीय शिक्षकों के लिए 2.6 लाख टैबलेट्स, 31 हजार से अधिक स्मार्ट क्लास और 14 हजार से अधिक विद्यालयों में ICT लैब की व्यवस्था की गई है। साथ ही, 746 कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों को पूरी तरह तकनीकी और बुनियादी सुविधाओं से युक्त कर दिया गया है। इनमें 82 हजार से अधिक बालिकाएं नामांकित हैं और उन्हें आवासीय सुविधाएं भी प्रदान की जा रही हैं।
यूपी शिक्षा पर खर्च कर रहा है 13 प्रतिशत बजट
उन्होंने बताया कि शिक्षा सरकार की प्राथमिकता में है। शिक्षा पर कुल बजट का लगभग 13 प्रतिशत हिस्सा खर्च किया जा रहा है। वर्ष 2024-25 में 48 हजार से अधिक विद्यालय ‘निपुण विद्यालय’ के रूप में सफल घोषित किए गए हैं। बेसिक शिक्षा के क्षेत्र में उत्तर प्रदेश की उपलब्धियों को देशभर में सराहा जा रहा है। स्वतंत्र एजेंसी द्वारा प्रकाशित ‘असर रिपोर्ट’ में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश में बच्चों के स्कूल आने और सीखने की इच्छा में उल्लेखनीय वृद्धि देखी जा रही है। इसके अलावा हाल ही में हुए ‘परख राष्ट्रीय सर्वेक्षण 2024’ में उत्तर प्रदेश के कक्षा 3 के छात्रों का प्रदर्शन देश के औसत से बेहतर रहा है। भाषा और गणित जैसे विषयों में छात्रों ने राष्ट्रीय औसत से अधिक अंक प्राप्त किए हैं।