पुलिस अधिकारी से राजनीतिज्ञ बने बृजलाल का लखनऊ में सफाई कर्मियों पर दिया गया वक्तव्य सुर्खियों में है। वैसे बृजलाल को सुर्खियों में रहने का शौक पूर्व से ही है। सेवा काल में उनकी गणना बहादुर और निर्भीक आईपीएस के रूप में होती रही। छवि चमकाने का उत्साह भी उनमें शुरूआत से ही था और कई बार इसके कारण उन्हें भारी मुसीबत का सामना करना पड़ा। यहां तक कि उनके कैरियर तक पर बन आई थी और आईपीएस की नौकरी के पहले पायदान पर ही उनका विकेट उखड़ जाने और जेल पहुंच जाने का खतरा बन गया था। लेकिन भाग्य ने उनका साथ दिया। एक समय उन पर अंबेडकरवाद का जुनून सवार हो गया था लेकिन आज वे हिन्दुत्व के सबसे बड़े फायर ब्रांड नेता के रूप में अपने को स्थापित करने के जोश से भरे नजर आते हैं।
जालौन जिले से की शुरूआत
बृजलाल 1977 बैच के आईपीएस हैं। ट्रेनिंग पूरी करने के बाद उनकी पहली पोस्टिंग ज्वाइंट एसपी के रूप में 1981 में जालौन जिले में हुई थी। उस समय जालौन जिले में डकैतों का आतंक चरम सीमा पर था। तब के प्रमुख दस्यु सरगनाओं में मलखान सिंह का नाम सबसे ऊपर था। मलखान सिंह के फुफेरा भाई रामपुरा थाने के हनुमानन का घनश्याम उर्फ घंसा बाबा का भी जबर्दस्त आतंक था। पुलिस के साथ पीएसी की कई कंपनियां झोके जाने के बावजूद डकैतों की नाक में नकेल डालना संभव नही हो रहा था। इस बीच मध्य प्रदेश पुलिस की देखा-देखी अनाड़ी होते हुए भी उस समय बृजलाल ने घनश्याम उर्फ घंसा बाबा के समर्पण का प्रयोग करने की कोशिश की। घंसा बाबा राजी भी हो गया। बृजलाल उस समय के आईजी दस्यु उन्मूलन गोविल साहब के सीधे संपर्क में थे। वे स्वयं हैलीकॉप्टर से रामपुरा के बीहड़ों में उतर कर घंसा बाबा से मिले भी थे। समर्पण की तैयारियां अंतिम चरण में पहुंच गयी थीं। पुलिस द्वारा बनाये गये पीस जोन में घंसा बाबा अपने साथियों के साथ आ चुका था। समर्पण के पहले वहीं घंसा बाबा हवन कराने लगा था जिसकी पूरी स्वीकृति पुलिस ने दे रखी थी।
हीरो बनने का चस्का शुरूआत से ही
इस ईवेंट को लेकर नये नवेले होकर भी बृजलाल का नाम तमाम अखबारों और पत्रकारों में छा गया था। जाहिर है कि उनमें प्रचार लोलुपता के कीटाणु पहले ही दिन से थे। जालौन के तत्कालीन एसएसपी हाकिम सिंह को बृजलाल का हीरो बनना रास नही आया। उन्होंने शासन को उनके खिलाफ एक रिपोर्ट भेज दी। जिससे रातों-रात बृजलाल का तबादला हो गया और घंसा बाबा के समर्पण की तैयारी ठंडे बस्ते में चली गयी। इसके बाद बृजलाल लखनऊ के एसपी सिटी बने। उस समय लखनऊ में कानून व्यवस्था की हालत बहुत खराब थी। बख्शी, केपी सिंह आदि माफियाओं का राज प्रदेश की राजधानी में चल रहा था। उनमें सड़कों पर दिन दहाड़े गैंगवार हो जाता था। घंटों गोलियां चलती थीं और पुलिस कहीं कोनों में दुबकी पड़ी रहती थी। बृजलाल आये तो उन्होंने पुलिस का इकबाल फिर से स्थापित किया। माफियाओं की गोलीबारी के सामने मुंह चुराने की बजाय उन्होंने जबाबी मोर्चा संभालने का साहस दिखाया। इस तरह बृजलाल की उत्तर प्रदेश के सुपर कॉप की तरह की पहचान बन गयी। यही वह दौर था जब वीपी सिंह ने कांग्रेस से अलग होकर देश की और उत्तर प्रदेश की राजनीति में तूफान खड़ा कर दिया था। जिसकी परिणति कांग्रेस के सत्ता से बाहर होने के रूप में हुई। 1989 में मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के पहली बार मुख्यमंत्री बने। मुलायम सिंह के दिमाग में सत्ता के अन्य स्तम्भों की तरह नौकरशाही का भी वर्ग चरित्र बदलने की योजना घूम रही थी। इसके तहत अपने गृह जनपद इटावा में पुलिस कप्तान पद के लिए उनकी नजरें किसी धाकड़ आईपीएस अफसर को तलाश रही थी। चूंकि उस समय मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू नही हुई थी और नौकरशाही के उच्च संवर्ग में पिछड़ी जाति के अधिकारी नाम मात्र के थे। ऐसे में स्वाभाविक रूप से मुलायम सिंह की निगाह बृजलाल पर जाकर टिकी।
छवि के लिए सारे एहसान दरकिनार
लेकिन मुलायम सिंह के लिए यह केर-बेर का संग साबित हुआ। छवि लोलुपता की कमजोरी के कारण बृजलाल के लिए राजनीतिक वफादारी से अपनी ख्याति का स्थान ऊपर था। इसलिये उन्होंने अपने राजनीतिक आका के हितों को परीक्षा के एक मौके पर बुरी तरह उपेक्षित कर खुद का पराक्रम दिखा डाला। इसमें मुलायम सिंह ने उन्हें न केवल निलंबित कर दिया बल्कि घुंगेश नाम के बृजलाल के ही लगभग समकक्ष अधिकारी को कानपुर रेंज के कार्यवाहक डीआईजी का चार्ज इस शर्त पर दे दिया कि वे अपनी जांच के माध्यम से बृजलाल की बर्खास्तगी का रोड मैप तैयार करेगें। गो कि इटावा जिला कानपुर रेंज में आता है जिसके नाते बृजलाल की जांच स्वाभाविक रूप से डीआईजी कानपुर को सुपुर्द होनी थी। गनीमत यह थी कि केंद्र में वीपी सिंह प्रधानमंत्री थे और मुफ्ती मोहम्मद सईद गृहमंत्री और इन दोनों पर मुलायम सिंह का जोर चल नही सकता था जबकि केंद्रीय सेवाओं के अधिकारियों की नौकरी केंद्र की सरकार के न चाहने तक छीनी नही जा सकती।
उड़ान के लिए बसपा के रनवे को चुना
उत्तर प्रदेश की राजनीति का परिदृश्य तब तक बदल चुका था। 1991 में कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने लेकिन उनका कार्यकाल अल्पकालिक रहा। इसके बाद राजनीतिक चक्र जो घूमा तो उसमें साफ हो गया कि प्रदेश पर लंबे समय तक सपा और बसपा का ही सिक्का चलेगा। बृजलाल से सपा नेतृत्व का गहरा बैर हो चुका था इसलिए विकल्प में वे मायावती की शरण में चले गये। जब वे आगरा के डीआईजी बने तो साफ-सुथरे नौकरशाह के मानकों को भुलाकर उन्होंने मायावती को खुश करने के लिए अपने रेंज के सभी जिलों के थानाध्यक्षों से चंदा वसूल करवा कर उन्हें बड़ी थैली सौंप डाली। इसके चलते 2011 में बहिन जी ने डीजीपी की कुर्सी पर विराजमान उनकी सबसे बड़ी मुराद पूरी कर दी। प्रचार प्रेमी नौकरशाह की आखिरी पनाह राजनीति होती है। इसी के अनुरूप रिटायर होने के बाद बृजलाल ने बसपा के ही जरिये अपनी राजनीतिक पारी शुरू की। लेकिन बसपा में कब अर्श से खींचकर फर्श पर पटक दिया जाये इसका कोई ठिकाना नही है। बृजलाल ने यह देखा और खून तक निचोड़ लेने वाला बसपा का आलम देखा तो उन्हें इस पार्टी को छोड़ देने में ही गनीमत नजर आई।
भक्ति भाव ने भाजपा में किया स्थापित
भाजपा में वे बड़े सुभीते में हैं। शुरू में जब वे भाजपा में शामिल हुए तो उन्हें बड़े धक्के खाने पड़े। उनकी तरह कई रिटायर आईपीएस और आईएएस अफसर भाजपा कार्यालय के चक्कर काटते रहे थे। बृजलाल देख रहे थे कि भाजपा के नेतृत्व को फुर्सत नही थी कि इन्हें घास डाले। भाजपा के नेता सत्ता की जिस बुलंदी पर पहुंच चुके थे वहां नौकरशाह कितने भी बड़े पद पर रहा हो उसका कोई ग्लैमर नही है। पर बृजलाल ने एक मंत्र सीखा कि देवताओं के चरणों में भक्ति भाव से पड़े रहो कुछ न कुछ मिल ही जायेगा। योगी सरकार को राजगददी मिलने के बाद सबसे बड़ा टंटा अनुसूचित जाति, जनजाति आयोग में दिखा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ वर्ण व्यवस्था की पाठशाला के सबसे मेरिटोरियस छात्रों में रहे हैं। जिसके कारण उनकी सरकार का रवैया ऐसा होना ही था कि अगर रीढ़ वाला अध्यक्ष एससी-एसटी आयोग में बैठ जाता तो उन्हें रोज फजीहत झेलनी पड़ती। ऐसे में उन्होंने बृजलाल को आजमाने की सोची जिनकी कातर मुद्रा उन्हें आश्वस्त कर चुकी थी। बृजलाल योगी आदित्यनाथ और भाजपा की कसौटी पर खरे उतरे। मालिक का इशारा समझने और उसके अनुरूप टास्क का निस्तारण करने में उन्होंने दिखाया कि उनका कोई सानी नही है। दलित उत्पीड़न के धर्म संकट में डालने वाले कई मामलों में उन्होंने सरकार को जो राहत दिलाई उससे वे भाजपा के दुलारे हो गये। इसके पुरस्कार स्वरूप उन्हें राज्य सभा गमन का अवसर प्रदान किया गया। देश के सर्वोच्च सदन में बैठने का गौरव हासिल कराया गया। गुण ग्राहक भाजपा सरकार ने गृह मंत्रालय की संसदीय समिति के अध्यक्ष के रूप में भी उनका बहुत मुफीद चयन किया।
भाजपा मार्का कानून व्यवस्था के सबसे कुशल पैरोकार
मुसलमानों को सबक सिखाने के लिए लक्षित भाजपा की कानून व्यवस्था के औचित्य प्रतिपादन में बृजलाल बेमिसाल भूमिका का निर्वाहन कर रहे हैं। चूंकि नौकरी के समय की अनेकों वीर गाथाएं उनसे जुड़ी हैं और वे दलित वर्ग से आते हैं दोनों चीजें उनके संदर्भ में सोने का सुहागा बन गयी हैं जिससे उनकी एडवोकेसी भाजपा के लिए बहुत ज्यादा फायदेमंद साबित हो रही है। महत्वाकांक्षी बृजलाल की काया से उम्र भले ही झलकने लगी हो लेकिन उनका मन जवानी की तरह अभी भी फुर्तीला है इसलिए वे थक कर बैठना नही चाहते। उनको आगे और बड़ी मंजिलें दिख रहीं हैं जिन्हें उनको सर करना है। इसीलिए कटटर हिन्दू का अवतार उन्हें इतना भा रहा है। लखनऊ के गोमती नगर एक्सटेंशन में वे रहते हैं जहां 24 अक्टूबर को मॉर्निंग वॉक के समय उन्होंने पांच सफाई कर्मियों को देखकर रोक लिया। उनसे पूंछा कहां के रहने वाले हो। सफाई कर्मियों ने बताया कि वे असम के हैं तो उन्होंने कहा कि तुम बंगलादेशी हो जो इंदिरा गांधी के समय देश में घुस आये थे। उनका बयान अत्यन्त आपत्तिजनक होने से जब मीडिया में चर्चा का विषय बन गया तो उन्होंने कहा कि वे घुसपैठ की समस्या की ओर ध्यानाकर्षण कराना चाहते थे। जाहिर है कि अभी भी वे इसे अपना बड़ा नेक काम मान रहे हैं। भाजपा को इतना वफादार और स्मार्ट दलित नेता कहा मिलेगा। इसलिए लोग भले ही उनके बयान को विवादित माने लेकिन बृजलाल ने इंतजाम कर लिया है कि उम्र के आधार पर राज्यसभा के अगले कार्यकाल के लिए उनकी छटनी नही की जायेगी और सांसद बनने के बाद केंद्र का मंत्री बनने का जो अगला पड़ाव उन्होंने तय कर रखा है उस तक पहुंचने की उनकी कामयाबी भी सुनिश्चित है।





