लखनऊ की पतंगबाजी: परंपरा, रोजगार और उत्साह का संगम

Lucknow news today । यूपी की राजधानी लखनऊ में नववर्ष के दूसरे दिन लखनऊ की पारंपरिक पतंगबाजी ने शहर की फिजाओं में उत्साह और उमंग का माहौल बना दिया। “यह काटा, वह काटा” की गूंज और आसमान में रंग-बिरंगी पतंगों का नजारा देखने लायक था। इस आयोजन ने न केवल मनोरंजन का साधन उपलब्ध कराया बल्कि शहर की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा को भी प्रदर्शित किया।

58 वर्षों से कायम परंपरा, रोजगार का जरिया
ऑक्सीजन मैन राजेश कुमार जायसवाल ने बताया कि लखनऊ में पतंगबाजी की यह परंपरा पिछले 58 वर्षों से जीवित है। उन्होंने कहा, “यह आयोजन न केवल लोगों का मनोरंजन करता है, बल्कि सैकड़ों कारीगरों और दुकानदारों को रोजगार भी प्रदान करता है। पतंग बनाने से लेकर बेचने तक इस आयोजन से कई परिवारों को आर्थिक सहायता मिलती है।”
इस वर्ष के आयोजन में रजनीश जायसवाल के साथ तरूश, गुड्डे, मिंटू, मिंकू, संतोष पाल, सुशील, सनी, लक्ष्मीकांत, राजेश श्रीवास्तव और नंद किशोर जैसे उत्साही प्रतिभागियों ने भी भाग लिया। इन सभी ने अपनी पतंगों के जरिए आसमान को सतरंगी बनाने में योगदान दिया।
सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने का प्रयास
ऑक्सीजन मैन राजेश जायसवाल, जो राष्ट्रीय स्तर की पतंगबाजी प्रतियोगिताओं और लखनऊ महोत्सव का हिस्सा रहे हैं, ने कहा कि यह आयोजन बच्चों के लिए परंपराओं को जानने और बुजुर्गों के लिए यादें ताजा करने का एक जरिया है।
गीत-संगीत और पकवानों ने बढ़ाया उत्साह
इस बार पतंगबाजी के साथ पारंपरिक गीत-संगीत और स्वादिष्ट पकवानों ने आयोजन को और भी खास बना दिया। परिवारों ने इस आयोजन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और एक-दूसरे के साथ समय बिताया।
अंतरराष्ट्रीय पहचान की ओर प्रयास
आयोजकों ने इस खेल को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने की जरूरत पर बल दिया। उनका मानना है कि पतंगबाजी न केवल एक खेल है, बल्कि यह शहर की पहचान और सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है।

पतंगबाजी का यह आयोजन हर साल की तरह इस बार भी लोगों के दिलों में खास जगह बना गया। आयोजकों ने इसे भविष्य में और भव्य बनाने की योजना साझा की, ताकि लखनऊ की पतंगबाजी नई ऊंचाइयों को छू सके।

