Search
Close this search box.
Search
Close this search box.

साहित्य अकादमी अवार्ड के ऐलान पर डॉ.अनीश अशफाक बोले—साहित्य लिखे जाने तक कायम रहेगी उर्दू

लखनऊ : साहित्य अकादमी ने भारतीय भाषाओं के जिन लेखकों के नाम का साल- 2022 के पुरस्कारों के लिए ऐलान किया है, उनमें चर्चित शायर, लेखक और समालोचक डॉ. अनीस अशफाक भी हैं. डॉ. अनीस को उर्दू के लिए इस साल का साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया जाएगा. उनके नाम के ऐलान के साथ ही साहित्य की दुनिया में एक बार फिर लखनऊ का नाम सुर्खियों में आ गया है. उर्दू साहित्य से जुड़े लोगों ने डॉ. अनीस अशफाक को इस कामयाबी के लिए बधाई दी है.

लखनऊ विश्वविद्यालय में पढ़ने के बाद किया शिक्षण कार्य

वर्तमान में शहर के गोमतीनगर इलाके के विपुलखंड निवासी डॉ. अनीस अशफाक
पुराने लखनऊ के नखास इलाके में पैदा हुए थे. उनका बचपन बंजारी टोला मोहल्ले में गुजरा और यहीं से उनमें उर्दू साहित्य के लेखन के प्रति रुचि पैदा हुई. डॉ. अनीस अशफाक ने लखनऊ विश्वविद्यालय से बीए, एमए, पीएचडी और डी लिट की उपाधि हासिल करने के बाद वहां पढ़ाने का भी कार्य किया. उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग में वर्ष 1983 से 2012 तक शिक्षण कार्य किया. वह 16 साल उर्दू विभाग अध्यक्ष भी रहे और अपने काम को बेहद ईमानदारी से पूरा किया.

कई पुरस्कारों से हो चुके हैं सम्मानित

डॉ. अनीस अशफाक को इससे पहले साहित्य अकादमी पुरस्कार 2000 में भी मिल चुका है. तब उन्होंने वरिष्ठ हिंदी लेखक निर्मला वर्मा के उपन्यास ‘कौव्वे और काला पानी’ का उर्दू में अनुवाद किया था. उन्हें भोपाल के एक संस्था ने इकबाल सम्मान से भी नवाजा. उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी डॉ. अनीस अशफाक को उनकी किताबों पर पुरस्कृत भी कर चुकी है.

कई उपन्यास हो चुके हैं प्रकाशित

डॉ. अनीस अशफाक का 2014 में उनका उपन्यास ‘दुखियारे’ प्रकाशित हुआ. 2017 में उनकी गजलों का एक संग्रह ‘एक नैजा खूने दिल’ लोगों ने बेहद पसंद किया. वहीं 2018 में ‘परिनाज के परिंदे’ आया. हाल ही में उनकी किताब ‘गालिब—दुनिया—एक—मायनी’ प्रकाशित हो चुकी है. वहीं और किताब एक किताब ‘अदब की बातें बहसो तनकीद आने वाली है. इस बीच अब साहित्य अकादमी ने उन्हें 2017 में प्रकाशित उपन्यास ‘ख्वाब सराब’ पर पुरस्कार देने का ऐलान किया है.

रोजी-रोटी से नहीं जुड़ पाई उर्दू

साहित्य अकादमी पुरस्कार की घोषणा के बाद डॉ. अनीस अशफाक को लोग लगातार शुभकामनाएं दे रहे हैं. वहीं वह उर्दू के फिर से पुराने दौर में लौटने को लेकर कहते हैं कि यह तभी मुमकिन है, जब लोग खुद उर्दू के लिए अपनी दिलचस्पी पैदा करें. इसके साथ ही उर्दू को आगे बढ़ाने में सरकार के स्तर पर भी काम हो. उन्होंने आज के दौर में उर्दू के पढ़ने और पढ़ाने का सिलसिला बेहद सीमित होने को लेकर कहा कि इसकी वजह उर्दू का रोजी-रोटी से नहीं जुड़ पाना है. अगर ऐसा होता तो तस्वीर दूसरी होती.

सिर्फ उर्दू पढ़ने वालों को नौकरी नहीं मिलती

डॉ. अनीस अशफाक ने कहा कि प्रदेश के सरकारी दफ्तरों में उर्दू में कामकाज नहीं होता, जबकि यहां ये सरकारी काम की भाषा भी है. सिर्फ उर्दू पढ़ने वालों को नौकरी नहीं मिलती. एक दौर था जब उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी बेहद सक्रिय रहा करती थी. अकादमी की ओर से उर्दू पठन-पाठन की रात्रि कालीन कोचिंग चलती थी. लाइब्रेरी को अनुदान मिलता था. लेकिन, अब उर्दू अकादमी पूरी तरह निष्क्रिय है.

लिपि बदलने पर जीते जी मर जाएगी उर्दू

डॉ. अनीस अशफाक ने उर्दू फारसी लिपि के बजाय देवानागरी लिपि में लिखे जाने से ज्यादा लोगों तक पहुंच होने को लेकर कहा कि कुछ लोगों को लगता है कि उर्दू का लिपि में बदलाव होना चाहिए. इससे जो लोग उर्दू लिपि पढ़ना नहीं जानते, वह भी उर्दू में लिखा गया साहित्य पढ़ सकेंगे. हालांकि मेरा मानना है कि अगर लिपि बदल गई तो उर्दू जीते जी मर जाएगी.

साहित्य लिखे जाने तक कायम रहेगी उर्दू

डॉ. अनीस अशफाक ने उर्दू की खराब होती हालत को लेकर कहा कि बहुत से लोग मायूसी जताते हैं लेकिन मैं कतई मायूस नहीं हूं. कोई भी भाषा हो, वह तब तक जिंदा रहती है, जब तक उसके लिखने पढ़ने वाले लोग रहते हैं. जब तक उर्दू साहित्य लिखा जाता रहेगा तब तक उर्दू कायम रहेगी.

Leave a Comment