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पूर्व सांसद ने की भारतीय न्याय संहिता को पुनः समीक्षा की मांग,प्रेस कॉन्फ्रेंस में कही यह बात

Jalaun news today । एक जुलाई से लागू हुई भारतीय न्याय संहिता समेत तीनों आपराधिक कानूनों की पुनः समीक्षा की मांग पूर्व राज्यसभा सांसद व वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पाल ने पत्रकारों से वार्ता करते हुए संसद में बहस के माध्यम से समीक्षा कर लगू किए जाने की की है।
पूर्व राज्यसभा सांसद व वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पाल ने पत्रकारों से वार्ता करते हुए कहा कि भारत की संसद चाहे वह लोकसभा हो अथवा राज्यसभा, उनमें देश के विभिन्न राज्यों के उच्च न्यायालय एवं सर्वोच्च न्यायाय में वकालत करने वाले अधिवक्तागण एवं कानूनविद् संसद सदस्य हमेशा से निर्वाचित होकर अथवा मनोनीत होकर आते रहे हैं। बताया कि एक जुलाई से जो तीनों आपराधिक कानून लागू किए गए हैं। वह संसद के दोनों सदनों से विधेयक के रूप में बिना बहस के पारित करा लिए गए थे। यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण और यह देश के लोकतंत्र को कमजोर करने वाला कुत्सित प्रयास है। गत सत्रहवीं लोकसभा में जब यह विधेयक पास होने के लिए लाए गए थे उस समय लोकसभा के 100 सांसद और राज्यसभा के 46 सांसद अप्रत्याशित रूप से सदन से निलंबित कर दिए गए थे। ऐसी परिस्थितियों में उपरोक्त तीनों आपराधिक काूनन विपक्ष की गैर मौजूदगी में और बिना बहस के सत्ता पक्ष ने एकतरफा पास करा लिए थे। यह कृत्य लोकतंत्र की मर्यादा को तार तार करने वाला था। बाबा साबव भीमराव अंबेडकर के द्वारा लिखित भारत के संविधान की पुनः समीक्षा करने की बात भारतीय जनता पार्टी कई बार कह चुकी है। इसलिए जनहित और न्यायहित में यह भी आवश्यक है कि इन नये कानूनों की भी पुनः समीक्षा होना चाहिए। ताकि न्याय प्रक्रिया में लगे अधिवक्ताओं के सामने आ रहे भ्रम एवं कठिनाइयां दूर हो सकें।

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