
Jalaun news today । ‘बड़े लड़इया महुवे वाले, इनकी मार सही न जाए’ को उजागर करता ‘कजली मेला’ जो रक्षाबंधन के दूसरे दिन पंडित दीनदयाल उपाध्याय चौराहे के पास लगता है, मंगलवार को कजली मेले में बच्चे, बूढ़े एवं युवाओं के साथ ही महिलाओं ने भी मेले में रौनक बिखेरी। हालांकि वर्तमान में अतिव्यस्त व आधुनिक जीवन शैली के चलते लोग पुरातन परंपराओं को भूलते चले जा रहे हैं। जिसके चलते साल दर साल लोगों की उपस्थिति कम होती जा रही है।
यह है कजली कथा
बुंदेलखंड क्षेत्र में वर्षों से कजली पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता रहा है। दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान व महोबा के राजा परमाल से हुए युद्ध के चलते बुंदेलखंड की बेटियां कजली (भुजरियां) को रक्षा बंधन के दूसरे दिन दफन कर सकी थीं। इस युद्ध में आल्हा व ऊदल ने अदम्य साहस दिखाते हुए पृथ्वीराज चौहान की सेना के दांत खट्टे कर दिए थे। इसलिए इस पूरे क्षेत्र में रक्षाबंधन के दूसरे दिन को विजय उत्सव के रूप में मनाया जाता है। नगर में पंडित दीनदयाल उपाध्याय चौराहे के पास वर्षों से कजली मेले का आयोजन किया जा रहा है। साथ ही एक दूसरे को कजली (भुजरियां) देकर रक्षा बंधन पर्व की बधाई देते हैं। इसके बाद देर शाम को कजली को मलंगा नाले में विसर्जित कर मेले का समापन किया जाता है। कोंच चौराहे पर लगे कजली मेले में बच्चों के खिलौने, झूले, चाट, पकौड़े, खजला, लहिया, पट्टी आदि के काउंटर काफी संख्या में लगे जिसमें लोगों की भीड़ नजर आई। इस दौरान पुलिस व्यवस्था भी चाक-चौबंद रही। मेले में इस बार काफी रौनक और भीड़भाड़ नजर आई। लेकिन कटुसत्य यह भी है कि आज की व्यस्ततम जीवन शैली के चलते लोगों का रूझान ऐसे आयोजनों की ओर से विमुख होता चला जा रहा है। फिर भी अभी परंपरा जीवित बनी हुई है। वहीं, पालिकाध्यक्ष प्रतिनिधि पुनीत मित्तल ने लोगों से मिलकर उन्हें शुभकामनाएं दीं। मेले के दौरान एसडीएम अतुल कुमार सीओ शैलेंद्र बाजपेई, कोतवाल वीरेंद्र पटेल, चौकी प्रभारी कुलवंत सिंह पुलिस फोर्स के साथ मेले में गश्त करते नजर आए।






