के पी सिंह
पूरे देश के कौतूहल का कारण बनी हुई सनसनी का शांत अंत सामने आ गया है। कई महीनों से मीडिया की रोजी रोटी इन चर्चाओं से चल रही थी कि 17 सितम्बर को 75 वर्ष के होने जा रहे दूसरों का इस आधार पर इस्तीफा कराने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद इस्तीफा देगें या नहीं। ये अटकल तब और पेचींदा हो गई थी जब संघ के एक बड़े स्तम्भ मोरोपंत पिंगले पर लिखी गई पुस्तक के विमोचन के समय सर संघ चालक मोहन भागवत ने फिर 75 वर्ष में सन्यास का राग छेड़ा था। तब यह तथ्य सामने आया था कि स्वयं मोहन भागवत भी 11 सितम्बर को 75 वर्ष के होने जा रहे हैं। सन्यास की उम्र को लेकर मोहन भागवत के बयान में कोई नई बात नही थी यह भी सब जानते हैं। भारतीय संस्कृति में उम्र के आधार पर आश्रम व्यवस्था का प्रतिवादन किया गया है। इसके तहत कहा गया है कि 75 वर्ष की उम्र के साथ व्यक्ति जीवन का अंतिम सोपान चढ़ जाता है। इसलिए उसके और समाज के हित में है कि वह मान ले कि जीवन में जो कुछ वह कर सकता था उसके लिए ऊपर वाले द्वारा उसे दिया गया समय पूरा हो गया है। इसलिए अब अपनी आकांक्षओं, महत्वाकांक्षाओं को भूलकर अंतिम सोपान के जीवन को शांतिपूर्ण ढंग से व्यतीत करना सुनिश्चित करने के लिए इस पड़ाव पर वह अपने को सभी जिम्मेदारियों से मुक्त कर ले। स्वाभाविक है कि इसलिए कुछ सयाने उनके बयान में यह खोज रहे थे कि इसमें उन्होनें अपनी स्थिति को लेकर किसी निश्छल निश्चय का संकेत तो नही देना चाहा है। यानि उनका मन्तव्य मोदी को घेरने की बजाय संकेतों में अपने सन्यास की उदघोषणा करना तो नही था। बात निकलती है तो दूर तलक जाती है। उनके बयान में निहित संभावनाओं पर अटकलों की इस तरह की दिलचस्प कसरतबाजी का बाजार कल तक गर्म बना हुआ था।
लेकिन आरएसएस के शताब्दी वर्ष पर नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित व्याख्यान माला के अंतिम दिन उन्होंने सारी उत्तेजनाओं का बहुत ही ठंडा पटाक्षेप कर डाला। उन्होंने प्रश्नोत्तर सत्र में इस पर आये एक सवाल के जबाव में कहा कि मैने कभी नही कहा कि मैं रिटायर हो रहा हूं या किसी और को रिटायर होना चाहिए। उन्होंने सनसनी के गुब्बारे को एक झटके में फोड़कर उसकी सारी हवा निकाल दी। लोगों को ऐसे बेमजा क्लाइमैक्स की आशा बिल्कुल नही थी। पर लोग यह भी नही मान पा रहे कि मोहन भागवत ने 75 वर्ष पर रिटायरमेंट का नियम हर नेता के लिए बाध्यकारी साबित करने की कोई मुहिम नही चला रखी थी। मोरोपंत पिंगले की पुस्तक के विमोचन के अवसर पर ही नही कुछ और मौकों पर भी वे अपने भाषण से मोदी को उम्र की याद दिलाते नजर आये थे। अब इस बात को लेकर अटकलें शुरू हो गई कि आखिर उनको पलटी खाने की जरूरत क्यों पड़ी। क्या इसलिए कि जिस फंदे को वह मोदी के लिए तैयार कर रहे थे अनजाने में वे उसमें अपनी ही गर्दन फंसा बैठे थे और उन्हें गंवारा नही था कि संघ भाजपा के इन सबसे सुनहरे दिनों में वे अपने को चर्चा से बाहर कर लें। निश्चित रूप से उनके मन में यह चाहत रही है कि इस स्वर्णिम काल का इतिहास उनके नाम पर दर्ज हो। इसलिए वह अपने को बनाये रखने का अवसर चाहते थे तो उनके पास मोदी को 75 वर्ष की उम्र के तर्क को लेकर हटने के लिए मजबूर करने का कोई नैतिक अधिकार नही रह गया था।
पहलगाम में टूरिस्टों पर आतंकवादी हमले से लेकर अर्थ व्यवस्था में निहित स्वार्थों के पोषण के ताने-बाने की परतें हाल में जिस ढंग से खुली थीं उसके कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मनोबल क्षीण होकर रसातल में पहुंच गया था। इसमें मतदाता सूचियों की धांधली के उजागर होकर आये प्रमाणों ने जलती आग में घी डालने का काम कर दिया। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जनमानस के बीच अपनी गिरती लोकप्रियता का बखूबी एहसास हो रहा था। ऐसे में संघ की मुहिम उनके के लिए बदहवास जैसा कारण बन गई थी। स्थिर चित्त न होने से पार्टी के अंदर की चुनौतियों से निपटने में उनकी कमजोरी सामने आने लगी थी। जाहिर है कि इसका प्रभाव सरकार में उनके कामकाज में भी दिखने लगा था। लेकिन आखिरी में वे हमेशा की तरह अपनी प्रमुख चुनौती को मैनेज करने में सफल हो गये। यह उनके लिए नई ऊर्जा के संचार जैसा है जिससे उत्पन्न उत्साह में वे सबसे पहले पार्टी विरोधियों की खबर लेने वाले हैं। इनमें नितिन गडगरी का नाम है तो योगी आदित्यनाथ का भी।
मोदी को मिले अभय दान का योगी के भविष्य पर क्या असर होता है लोगों की उत्सुक निगाहें अब इस पर जम गई हैं। योगी आदित्यनाथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चाहे जितनी स्तुति करें लेकिन यह बहुत स्पष्ट है कि वे नरेंद्र मोदी के गले नही उतरते। कई मौकों पर प्रधानमंत्री उन्हें लेकर अपनी अरुचि प्रदर्शित कर चुके हैं। लेकिन उन्हें हटाने के अभी तक किये गये हर प्रयास को संघ वीटो करता रहा है। पर क्या अब संघ में वह शक्ति और सामर्थ्य बची है कि वह मोदी के इरादों पर अंकुश लगा सके। आरएसएस की व्याख्यान माला के तीसरे दिन की कुछ और स्थितियां भी दृष्टव्य हैं। प्रधानमंत्री के सन्यास को लेकर मोदी आज क्या कहेगें जब यह सवाल विज्ञान भवन की फिजा में तैर रहा था उस समय भाजपा की भी कार्यकारिणी की बैठक चल रही थी। संघ के प्रतिनिधि के रूप में सुनील बंसल भी इस बैठक में उपस्थित थे। उनके समेत बैठक में उपस्थित सारे नेताओं ने मोदी की सर्वोच्चता पर बल देने का काम किया। इसके साथ बैठक में 17 सितम्बर से लेकर 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के दिन तक मोदी के जन्म दिन के उपलक्ष्य में सेवा पखवारा मनाने की रूपरेखा तैयार की। इसके पीछे मंशा यह जताना था कि पार्टी मोदी के रिटायरमेंट को मंजूर नही करेगी। इसकी जानकारी मिलने के बाद मोहन भागवत का साहस नही था कि वे कोई अलग फरमान जारी कर सकें। जाहिर है कि संघ को समर्पण करना पड़ा था। इससे मोदी के हौसले इतने बुलंद हो गये हैं कि उत्तर प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन कराने में वे किसी किंतु-परंतु को नही मानने वाले। योगी खेमें में इसके काट की क्या तैयारियां चल रही हैं इसकी जानकारी के लिए लखनऊ में हर पल की हलचल पर निगाह रखनी पड़ेगी।
हालांकि संघ प्रमुख मोहन भागवत जब रिटायरमेंट के प्रश्न पर अपने पूर्व कथन से मुकर रहे थे तब उनके चेहरे पर किसी तरह का तनाव नही था। अंदाजा है कि उनके और मोदी के बीच पर्याप्त अंडरस्टैडिंग पहले ही बन चुकी थी। जिसमें कुछ ऐसा हुआ कि मोहन भागवत की प्रतिष्ठा भी बच गई और मोदी के सिर पर लटकी तलवार भी हट गई। इस एहसास से ही मोहन भागवत तनाव मुक्त नजर आये। उत्तर प्रदेश के भाग्य निर्णय के साथ-साथ भारतीय जनता पार्टी के नये राष्ट्रीय अध्यक्ष के बारे में भी फैसला करने का अधिकार भी पूरी तरह मोदी के हाथ में आ गया है। संघ प्रमुख ने इसका आभास यह कहकर दिया कि भारतीय जनता पार्टी अपना अध्यक्ष खुद तय करेगी। अगर संघ को उनका अध्यक्ष बनाना होता तो क्या इतनी देर लगती, मजाक में मोहन भागवत बोले। अभी तक हतोत्साहित मनःस्थिति के कारण मोदी विपक्ष के सामने भी हॉस्टाइल थे। लेकिन अब उनका हमलावर अंदाज पहले से भी ज्यादा खूंखार रूप में सामने आ सकता है। अपनी जापान और चीन यात्रा से लौटने के बाद मोदी का कहर किस रूप में विपक्ष पर टूटे यह देखने वाली बात होगी।
