रिपोर्ट बबलू सेंगर
Jalaun news today । नवरात्रि महोत्सव के चौथे दिन नगर के माता के मंदिरों व दुर्गा पंडालों में मां के चौथे स्वरूप कूष्मांडा की पूजा अर्चना की गयी। भक्तों ने माता के मंदिरों व पंडालों में पहुंचकर श्रृद्धा पूर्वक विधि विधान से पूजा अर्चना की तथा मां से यश, सुख, समृद्धि, अच्छी सेहत और दीर्घायु की कामना की।
शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा की नगर में बनाए गए 63 पंडालों व नगर के प्राचीन व प्रमुख छोटी माता, बड़ी माता, छटी माता, संतोषी माता, अलखिया माता, कामाक्षा देवी पहाड़पुरा में पूजा अर्चना की गयी। सूर्य उदय से पूर्व मां की मंगला आरती से मंदिरों के पट खुल गये तथा भक्तों का पहुंचना शुरू हो गया। पंडालों में मंदिरों से आती शंख, झालर, घंटा व देवी गीतों की ध्वनि से नगर का वातावरण मां की भक्ति मय हो गया ।
मां कूष्मांडा की आठ भुजाएं हैं, इसलिए इनको अष्टभुजा देवी भी कहते हैं। ये अपनी आठ भुजाओं में चक्र, गदा, धनुष, बाण, अमृत कलश, कमल और कमंडल धारण करती हैं. मां कूष्मांडा का वाहन सिंह है, जो साहस और निर्भय का प्रतीक है। येदेवी अपने एक हाथ में जप की माला भी धारण करती हैं। मां कूष्मांडा के नाम का अर्थ कुम्हड़ा है। इसे संस्कृत में कूष्मांडा कहते हैं।पं. देवेन्द्र दीक्षित बताते हैं कि मां कूष्मांडा के नाम का अर्थ त्रिविध तापयुक्त संसार जिनके उदर में स्थित है, वे भगवती कूष्मांडा कहलाती हैं। कूष्मांडा का अर्थ कुम्हड़े से भी है। मां कूष्मांडा को कुम्हड़ा अति प्रिय है, इसलिए भी इनको कूष्मांडा कहते हैं. हालांकि बृहद रूप में देखा जाए तो एक कुम्हड़े में अनेक बीज होते हैं, हर बीज में एक पौधे को जन्म देने की क्षमता होती है। उसके अंदर सृजन की शक्ति होती है. मां ने इस पूरे ब्रह्मांड की रचना की है।उनके अंदर भी सृजन की शक्ति है।