राज्य ग्राम्य विकास प्रशिक्षण संस्थान बैठक सम्पन्न,,मुख्य अतिथि ने सम्बोधन में कही यह बात,,

Lucknow news today । उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में स्थित दीनदयाल उपाध्याय राज्य ग्राम्य विकास संस्थान द्वारा संस्थान के महानिदेशक एल० वेंकटेश्वर लू की अध्यक्षता में, संस्थान के प्रशासनिक नियंत्रणाधीन प्रदेश के समस्त क्षेत्रीय/ जिला ग्राम्य विकास संस्थानों के प्राचार्यों/जिला प्रशिक्षण अधिकारियों के साथ, प्रशिक्षण कार्यक्रमो के आयोजनार्थ, एक प्रदेश स्तरीय बैठक का आयोजन, किया गया। शनिवार को आयोजित हुये इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि रामकृष्ण गोस्वामी, अध्यक्ष-भारत चरित्र निर्माण संस्थान, नई दिल्ली की उपस्थिति में किया गया था। उक्त बैठक में चर्चा के दृष्टिकोण से प्रमुख विषय था मिशन कर्मयोगी और कर्तव्य धर्म।


इस अवसर पर मुख्य अतिथि रामकृष्ण गोस्वामी ने अधिकारियों को सम्बोधित करते हुए बताया कि संस्कृति-युक्त नैतिकता अथवा सामाजिक नीति के अनुसार, कर्मयोग और कर्तव्य धर्म, दोनों प्रत्येक व्यक्ति को सचेत करती है कि कौन सा कर्म उचित है और कौन सा अनुचित। इस दृष्टिकोण से भारतीय संस्कृति में धर्म का स्थान अप्रतिम है दोनों का ध्येय यथेष्ट रूप से समान है क्योंकि ये दोनों तत्व किसी भी व्यक्ति की आन्तरिक शुद्धि पर बल प्रदान करते हैं। भारतीय संस्कृति एवं धर्म का अन्योन्याश्रय सम्बन्ध है। धर्म हीं पशु की तुलना में मानव के अतिरिक्त गुण व लक्षण का द्योतक है क्योंकि अवशेष लक्षण तो मनुष्य और पशु में एक समान पाये जाते हैं। अतः धर्म संस्कृति का आवश्यक अंग है।


अपने अध्यक्षीय उद्बोधन के अन्तर्गत संस्थान के महानिदेशक एल० वेंकटेश्वर लू द्वारा समस्त अधिकारियों को सम्बोधित करते हुए बताया कि वेदों में प्रयुक्त अनुशासनों के आधार पर चलना हीं धर्म है। धर्म मनुष्य के अन्त:करण को प्रभावित कर, अनुशासित करता है। उसे निर्मल एवं पवित्र बनाता है। धर्म का प्रमुख कार्य मनुष्य के आचरण के लिए, भारतीय संस्कृति के अन्तर्गत कुछ ऐसे नैतिक मूल्यों एवं आदर्शों को प्रतिस्थापित करना होता है, जिन पर चलकर, वह न केवल अपना हीं, ऐहिक एवं पारलौकिक जीवन का सद्मार्ग बनाता है, अपितु समाज में भी, अपने आचरण से, सद्भावना की सुगन्ध छोड़ देता है। मनुष्य को संस्कृतिशील एवं सभ्य बनाने के लक्ष्य की ओर उन्मुख करने एवं जीवन की उच्च उपलब्धियों को प्राप्त करने के लिए आध्यात्मिक या नैतिक भावना प्रेरित करना धर्म का कार्य है। भारतीय, संस्कृति व हमारे पौराणिक ऋषि-मुनियों का वैचारिक दर्शन , भारतीय रीति रिवाज व मानव धर्म को इसी आलोक में प्रतिबिम्बित करती है, नकि संकीर्ण साम्प्रदायिक दृष्टि या ओछी मानसिकता के साथ।


सम्पूर्ण कार्यक्रम का आयोजन संस्थान के अपर निदेशक बी डी चौधरी द्वारा किया गया तथा समीक्षा बैठक के अन्त में इन्हीं के द्वारासभी को सादर धन्यवाद ज्ञापित किया गया।
मुख्य अतिथि रामकृष्ण गोस्वामी व महानिदेशक एल० वेंकटेश्वर लू० की ओर श्रीमद् भगवत गीता की एक प्रति बी०डी०चौधरी , अपर निदेशक को सप्रेम भेंट की गई तथा तथा संस्थान के उन्नयन व उत्तरोत्तर विकास के परिप्रेक्ष्य में अपर निदेशक संस्थान की भूरि-भूरि प्रसंशा, मुख्य अतिथि व महानिदेशक द्वारा की गई।

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