Search
Close this search box.
Search
Close this search box.

6 वर्ष की उम्र में हो गया था बाबू जगजीवन राम के पिताजी का निधन,,जन्मदिन पर पढ़िए विशेष

Babu Jagjivan Ram's father died at the age of 6, read special on his birthday

यवंचितों शोषितों के हमदर्द थे, बाबू जगजीवन राम : इं भीमराज

(राकेश यादव )

Babu Jagjiwan Ram : समाज के जिन महान विभूतियों ने शोषितों एवं वंचितों के लिए लड़ाई लड़ी एवं उनका हक एवं न्याय दिलाने का जिन महान विभूतियों ने काम किया उनमें से एक थे “बाबू जगजीवन राम” । इनका जन्म 5 अप्रैल सन् 1908 मे बिहार प्रांत के शाहाबाद जिले के चंदवा गांव में हुआ था। इनके पिता जी का नाम शोभाराम एवं माता जी का नाम बसंती देवी था। बाबूजी के दादा शिवनारायण एक खेतिहर मजदूर थे। वह अपने माता-पिता की सबसे छोटी संतान थे। बाबू जगजीवन राम जब 6 वर्ष के थे तब उनके सिर से उनके पिता का साया उठ गया था। पिताजी की घोर गरीबी की तस्वीरें उनके मानस पटल पर बनी रही। उस समय भारत में लोग स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजो से लड़ाई लड़ रहे थे। परन्तु वंचित समाज को दोहरी लड़ाई लड़ना पड़ रहा था। ऐसे समय में बाबू जगजीवन राम ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय प्राइमरी विद्यालय में प्राप्त किया। उनको सन् 1914 में विद्यालय में दाखिला दिलाया गया, उस समय विद्यालय में अछूत बच्चों की ड्रेस गेरूवे रंग की धोती तथा लाल टोपी थी। सफेद धोती अछूत बच्चों के लिए वर्जित थी। स्कूल में अछूत बच्चों को अपनी टाटपट्टी तथा काठ की पट्टी लेकर जाना होता था। बाबू जगजीवनराम जी इतने गरीब थे कि वह किताबें तथा पेंसिल आदि नहीं खरीद सकते थे। कक्षा में जब बच्चे किताबें पढ़ते थे, तब वह सुनते और याद रखते थे। विद्यालय में पढ़ाई के अतिरिक्त बच्चों से अन्य कार्य भी कराए जाते थे। उसमें भी भेदभाव था। बाबू जगजीवन राम जी से विद्यालय में पेड़ों में पानी डलवाने एवं पेड़ों की देखभाल करने का काम इनको करना पड़ता था। इतना सब अपमान सहने के बाद भी उन्होंने अपनी शिक्षा जारी रखी सन 1926 में उन्होंने आर्थिक विपन्नता जीवन में घोर संकट के बावजूद भी मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी। इसके बाद उन्होंने 1926 में काशी विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया था वहां उन्हें हिंदू कट्टरपंथियों की भेदभाव की नीति का कटु अनुभव प्राप्त हुआ। उस समय लोग उनको छूने से भी कतराते थे। सन् 1928 में उन्होंने कोलकाता के विद्यासागर कॉलेज में प्रवेश लिया और सन 1931 में बीएससी की परीक्षा उत्तीर्ण की। उसके पश्चात घर के हालात और अनुसूचित जाति की दयनीय दशा के कारण शिक्षा छोड़नी पड़ी। इस प्रकार शैक्षिक जीवन में घोर अपमान सहते हुए शिक्षा जारी रखी। और सदैव उच्च श्रेणी में पास होते रहे। हिंदी अंग्रेजी के अतिरिक्त पदार्थ विज्ञान, रसायन शास्त्र और गणित के विषय थे बाबू जगजीवन राम को विद्यार्थी जीवन में ही अछूतों की अति दयनीय दशा को देखते हुए बड़ी चिंता हुई और उन्होंने अछूतों की दशा सुधारने का बीड़ा उठाया उनकी धारणा थी कि भारत में सामाजिक क्रांति की आवश्यकता है। बाबूजी का एक मात्र उद्देश्य था कि अछूतों को उनका हक दिलाकर उन्हें समाज की मुख्य धारा में लाकर समाज में समानता लायी जाए। स्वामी अछूतानंद जो उस समय सामाजिक क्रांति का बिगुल बजा रहे थे, बाबूजी उनसे प्रभावित होकर उनको अपना गुरु मान लिया था। बाबूजी ने आरा में हिंदू और अछूतों की एक सभा में कहा कि अछूत इस देश के नागरिक हैं इनकी इस देश की हर अस्मत में हिस्सेदारी है। मैनपुरी जिले के बेवर में आयोजित अनुसूचित जाति के सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए थे। वहां पर उन्होंने अपने वक्तव्य में अनुसूचित जाति के लेखकों से अनुरोध किया था कि है कि वह लोग अछूतों का आदि धर्म खोजने का काम करें। ताकि आर्यों के भारत में आने से पूर्व का इतिहास जाना जा सके। उन्होंने 21 वर्ष की आयु में कोलकाता के वेलिंगटन पार्क में अछूतों का एक बहुत बड़ा सम्मेलन आयोजित किया था, जिसमें लगभग बीस हजार लोग एकत्रित हुये, इस सम्मेलन में बाबूजी ने अछूतों को संदेश दिया कि वह संगठित हो और मरे जानवरों को उठाना छोड़ दें। समाज में सम्मान से जीने के लिए बुरे व्यसन भी त्याग दें। बाबूजी की प्रतिभा का प्रकाश अछूतों में फैलने लगा था और कट्टर हिंदू इन्हें एक चुनौती के रूप में मानने लगे थे। सन्1934 में कोलकाता में रविदास महासभा का सम्मेलन बाबू जी द्वारा आयोजित किया। वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने रविदास जयंती मनाना आरंभ किया। इसी बीच उनकी पत्नी का 1933 में देहांत हो गया था। उन्होंने 1935 में कानपुर के डॉक्टर बीरबल की पुत्री इंद्राणी देवी से दूसरा विवाह किया। इनके पुत्र सुरेश राम थे जिनका निधन हो गया। इनकी बेटी मीरा कुमार भारतीय विदेश सेवा की1970 बैचकी अधिकारी थी। जो पांच बार सांसद एवं लोकसभा की अध्यक्ष थी।सन् 1936 में जब बिहार और उड़ीसा अलग-अलग राज्य गठित हुए थे तो विधान परिषद के लिए एक सदस्य का मनोनयन होना था, तब गांधीजी और राजेंद्र प्रसाद ने एक हिंदू को सदस्य बनाने का निश्चय किया। इससे बाबू जगजीवन राम ने विद्रोह कर दिया और कहा कि वह यदि अनुसूचित जाति को परिषद का सदस्य नहीं बनाया गया तो हम देश व्यापी दलित आंदोलन करेंगे, यह सुनकर हिंदुओं ने बाबूजी को भी सदस्य नियुक्त किया। वह 28 वर्ष की उम्र में वह विधान परिषद के सदस्य बने सन गये। सन् 1937 में अनुसूचित जाति वर्ग संघ के प्रत्याशियों ने 15 सुरक्षित सीटों में से 14 सीटों पर जीत हासिल की, जिसे देखकर कांग्रेसियों के होश उड़ गये। और उनको मंत्रिमंडल में शामिल करने का लालच दिया परन्तु बाद में धोखा दिया और मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया। सन्1936 में हुए विधान मंडल के सदस्य चुने गए और पार्लियामेंट्री सचिव बनाए गये। सन् 1940 से 1946 तक वे बिहार कांग्रेस कमेटी के महासचिव पद पर रहे। 10 सितंबर 1940 को बाबूजी ने शाहाबाद जिले में व्यक्तिगत सत्याग्रह किया। पीरु में इन्हें गिरफ्तार करके एक वर्ष के लिए हजारीबाग जेल भेज दिया गया। 10 सितंबर 1941 को उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया। 20 अगस्त 1942 को एक वर्ष दो माह के लिए बाबूजी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। फिर उन्हें अक्टूबर 1943 में रिहा किया गया। सन् 1944 में जब गांधी जी ने जिन्ना से मिलकर दो राष्ट्र फार्मूले पर वार्ता कर अछूतों को उपेक्षित कर दिया गया, तब बाबा साहेब डा• भीमराव अंबेडकर ने घोषणा की यदि कांग्रेस और लीग मिलकर सरकार बनाती है और उसमें दलित वर्ग को शामिल नहीं किया गया तो वह विरोध करेंगे। बाबा साहेब के उक्त विचारों से बाबू जगजीवन राम सहमत थे और उनका साथ दिया। 18 अगस्त 1946 को जवाहरलाल नेहरू ने 11 सदस्यीय सरकार बनायी, जिसमें बाबू जगजीवन राम को मंत्री बनाया गया। उन्होंने केंद्र सरकार में श्रम मंत्री के पद पर रहते हुए अनेक कार्य अनुसूचित जाति जनजाति एवं के श्रमिकों के लिए किया। जिसमें श्रमिकों के लिए न्यूनतम वेतन कानून बनाया, दलितों को औद्योगिक प्रशिक्षण की व्यवस्था करायी फैक्ट्री एक्ट तथा माइन्स एक्ट को संशोधित कर कठोर बनाया ताकि वंचितों को उनका अधिकार मिल सके। 1952 में आम चुनाव हुए तो बाबू जी सांसद चुने गए और वह स्वतंत्र भारत के प्रथम संचार मंत्री बनें। संचार मंत्री का पद ग्रहण करने के पश्चात सबसे पहले सन् 1953 में उन्होंने भारतीय एयरलाइंस कंपनियों का राष्ट्रीयकरण का विधेयक पारित कराया। हवाई यातायात का राष्ट्रीयकरण करवा दिया। जिसमें दो निगमों की स्थापना की गयी।

1• इंडियन एयरलाइंस कारपोरेशन।
2• एयर इंडिया इंटरनेशनल। स्वतंत्र भारत में यह पहला राष्ट्रीयकरण था। इससे पूंजीपतियों में हलचल मच गयी। डाक विभाग में अनुसूचित जाति का आरक्षण बाबूजी की देन है। सन् 1956 में दिसंबर माह में बाबूजी को रेल मंत्री बनाया गया, वहां पर भी उन्होंने अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित पदों हेतु सभी पर सीधी भर्ती कराकर आरक्षण को पूरा करने का आदेश पारित किया। इस विभाग में उन्होंने पानी पिलाने वाले पदों को सृजित किया। और इन पदों पर अनुसूचित जाति के कर्मचारियों की नियुक्ति कराई जिससे छुआ- छूत का भेद-भाव दूर किया जा सके। आरक्षण के संबंध में बाबूजी का मानना था कि “जातिगत आरक्षण तब तक लागू रहना चाहिए जब तक जातियां हैं” साथ यह भी कहा कि “आरक्षण से हिंदू जलता है तो जलता रहे, आरक्षण का विरोध कर वह हमें सदा गुलाम बनाए रखना चाहता है। दलित किसी के गुलाम बने रहना नहीं चाहते। आरक्षण से कोई जाति भेद नहीं फैला है, जाति भेद पहले से है। आरक्षण से हालत सुधरी है और जाति का भेद कम हुआ।” इनकी सफलता को देखकर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जी घबरा गए और उन्हें साजिश के तहत अपने मंत्रिमंडल से उन्होंने बाबूजी को निकाल दिया था। परंतु नेहरू जी के निधन के उपरांत प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने उन्हें सन् 1967 में कृषि एवं खाद्य मंत्री बनाया। उनके कृषि मंत्री के कार्यकाल ” हरित क्रांति” आयी। जिससे खाद्यान्न उत्पादन कई गुना बढ़ गया, और भारत खाद्यान्न में आत्मनिर्भर हो गया। सन् 1970 में बाबूजी रक्षा मंत्री बनाए गए भारत और पाकिस्तान युद्ध पाकिस्तान की भूमि लाहौर और रावलपिंडी में हुआ। इसमें भारत को विजय प्राप्त हुयी। इसका श्रेय इंदिरा गांधी ने बाबूजी को न देकर स्वयं ले लिया। सन् 1971 में बांग्लादेश का निर्माण मुजीबुर्रहमान की अगुवाई में बाबूजी ने कराया था। बाबूजी में अद्भुत प्रशासनिक क्षमता थी। इन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में जो भी विभाग मिला उस पर उन्होंने अपनी विद्वता की छाप छोड़ी। और वहां पर वंचित शोषित अनुसूचित जाति के हितों के लिए जो भी हो सकता था वह उन्होंने अथक प्रयास से किया। सन् 1975 में इंदिरा गांधी ने भारत में आपातकाल लागू कर दिया। सन् 1977 में कांग्रेस पार्टी से त्यागपत् देकर जनता पार्टी में आए, और जनता पार्टी चुनाव जीत गई, प्रधानमंत्री का पद बाबू जगजीवन राम को मिलना था। परंतु चौधरी चरण सिंह इससे नाराज होकर पार्टी छोड़ने की धमकी दी तो मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री बना दिया गया। और बाबू जगजीवन राम को रक्षा मंत्री बनाया गया। तब बाबू जी ने कहा था कि इस देश में अनुसूचित जाति का आदमी कभी प्रधानमंत्री नहीं बन सकता। ढाई वर्ष बाद संसद भंग हो गयी और चुनाव हुए जिसमें इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बन गयी। फिर बाबू जगजीवन राम ने अपनी कांग्रेस पार्टी -जे- बनायी और 84 में अपनी पार्टी से चुनाव लड़ा और जीता। बाबू जगजीवन राम कुशल राजनीतिज्ञ, देशभक्त, समाज सुधारक, राजनीतिक विद्वान, और अर्थशास्त्री थे। वह 40 साल तक लगातार संसद सदस्य रह कर एवं भारत सरकार में मंत्री रहकर संसदीय राजनीति में एक कीर्तिमान स्थापित किया। अंतिम समय तक अनुसूचित जाति अनुसूचित जाति अन्य पिछड़ा वर्ग एवं वंचित समाज के लिए लड़ते रहे। 6 जुलाई 1986 में इस महान सपूत का महापरिनिर्वाण हुआ। भारत का पूरा पंचित समाज सदैव उनका ऋणी रहेगा। क्योंकि वह अपने पूरे जीवन काल में वंचित शोषितों के लिए लड़ाई लड़ते रहे। आज हम उनके जन्मदिन पर उन्हें याद कर और उनके आदर्शों को मानने की आवश्यकता है। यही उनके प्रति सच्ची निष्ठा होगी।

Leave a Comment