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लोकसभा चुनाव : पूर्वांचल की आठ सीटें भाजपा के लिए बड़ी चुनौती!

2024 में इन सीटों पर हार जीत का समीकरण

(राकेश यादव)

Loksabha election 2024 । प्रदेश के पूर्वांचल की सियासत पर पूरे देश की नजर हैं। एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकसभा वाराणसी है। तो दूसरे ओर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गृह जनपद गोरखपुर सीट है। इन सीटों पर भाजपा के लिए मुश्किल यह है कि 2014 लोकसभा और 2017 विधानसभा चुनाव को छोड़ दें तो उसके बाद 2019 लोकसभा और 2022 विधानसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन संतोषजनक नहीं रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अपनी पांच लोकसभा सीटें गवां दी थीं तो 2022 विधानसभा चुनाव में कई जिलों में भाजपा का सूपड़ा ही साफ हो गया। इसी तरह 2019 में 3 लोकसभा सीटें ऐसी थीं जहां मामूली वोटों से भाजपा प्रत्याशी चुनाव जीत सके थे। भाजपा के दो बड़े महारथियों के प्रभाव के बावजूद भाजपा की ऐसी दुर्गति क्यों है। 2024 में क्या समीकरण बन रहे हैं, आइये जानते हैं।

2019 में इन 5 सीटों पर बीजेपी को मिली थी हार, इस बार क्या है समीकरण

  1. आजमगढ़ लोकसभा

2019 के लोकसभा चुनाव में आजमगढ़ लोकसभा से सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ढाई लाख से ज्यादा वोटों से जीत हासिल की थी।यादव और मुस्लिम बाहुल्य इस लोकसभा में एमवाई फार्मूला काम करता रहा है। अखिलेश यादव के रिजाइन करने के बाद हुए उपचुनाव में अखिलेश यादव के भाई धर्मेंद्र यादव को यहां से करारी हार मिली।भाजपा के प्रत्याशी भोजपुरी एक्टर और सिंगर दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ को जीत मिली थी, लेकिन जीत का अंतर काफी कम हो गया।इस बार समीकरण सपा के पक्ष में है, क्योंकि उपचुनाव में भाजपा के जीत का कारण बने बसपा प्रत्याशी गुड्डु जमाली अब सपा के साथ हैं। बसपा इस बार कई प्रत्याशी बदलने के चलते पहले जितना प्रभावी नहीं है।

  1. घोसी लोकसभा

पिछले चुनाव में घोसी लोकसभा से बसपा से अतुल राय ने चुनाव जीता था। अतुल राय को 1,22,568 वोटों के अंतर से जीत मिली थी। इस बार सपा और बसपा ने मजबूत प्रत्याशी उतारा है। सपा से राजीव राय तो बसपा से बालकृष्ण चौहान चुनावी मैदान में हैं। बालकृष्ण घोसी से एक बार सांसद भी रह चुके हैं। एनडीए ने यहां से सुभासपा के अरविंद राजभर को प्रत्याशी बनाया है। अरविंद राजभर सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर के बेटे हैं। भाजपा ने घोसी के दारा सिंह चौहान को पार्टी में शामिल किया था कि चौहान (नोनिया) वोटों का फायदा हो सकेगा, लेकिन बसपा प्रत्याशी के भी नोनिया जाति से होने से यह फायदा अब एनडीए प्रत्याशी को नहीं मिलेगा। इसी तरह भाजपा को सवर्ण (भूमिहार) वोट भी मिलने की उम्मीद भी अब कम है, क्योंकि सपा ने भूमिहार समुदाय के राजीव राय को प्रत्याशी बनाया है।

  1. गाजीपुर लोकसभा

गाजीपुर लोकसभा से 2019 का लोकसभा चुनाव बसपा से अफजाल अंसारी ने जीता था। अफजाल अंसारी ने मनोज सिन्हा को 1,19,392 मतों के अंतर से हराया था। गाजीपुर लोकसभा से भाजपा के मनोज सिन्हा तीन बार सांसद रह चुके हैं। इस बार मनोज सिन्हा के करीबी पारस नाथ राय को भाजपा ने प्रत्याशी बनाया है। मनोज सिन्हा जबसे कश्मीर के राज्यपाल बने हैं तबसे उनके नाम और काम की काफी चर्चा है। मनोज सिन्हा को लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का खास समझने लगे हैं, जिससे मनोज सिन्हा का प्रभाव गाजीपुर में कुछ काम कर सकता है, लेकिन माफिया मुख्तार अंसारी की मौत से सपा प्रत्याशी अफजाल अंसारी को सहानुभूति वोट मिलने की उम्मीद है। इस बार बसपा अफजाल अंसारी के साथ नहीं है।इसलिए यहां की लड़ाई इस बार कांटे की है।

  1. जौनपुर लोकसभा

जौनपुर लोकसभा से भी 2019 में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। जौनपुर से बसपा के श्याम सिंह यादव ने चुनाव जीता था। 1989 से 2014 के बीच भाजपा ने जौनपुर से चार बार लोकसभा का चुनाव जीता था। इस बार भाजपा ने मुंबई में पूर्वांचल के लोकप्रिय नेता कृपाशंकर सिंह को प्रत्याशी बनाया है। कृपाशंकर सिंह का मुकाबला बाबू सिंह कुशवाहा से है। बाबू सिंह कुशवाहा सपा से चुनाव लड़ रहे हैं।बाबू सिंह कुशवाहा बसपा में रहते हुए अति पिछड़ों के कद्दावर नेता रहे हैं। बसपा ने अपने पुराने सांसद श्याम सिंह को ही प्रत्याशी बनाया है। अगर बसपा प्रत्याशी कमजोर पड़ता है तो सपा को फायदा होना तय है। वैसे धनंजय सिंह ने जबसे भाजपा के पक्ष में बैटिंग शुरू की है भाजपा को फायदा होने की उम्मीद बढ़ी है।

  1. लालगंज लोकसभा

लालगंज लोकसभा सुरक्षित लोकसभा है। 2014 में यहां से भाजपा जीती थी। 2014 में भाजपा की नीलम सोनकर यहां से चुनाव जीता था। 2019 में सपा और बसपा ने एक साथ चुनाव लड़कर भाजपा से यह लोकसभा छीन ली थी।लालगंज लोकसभा लोकसभा से 2019 का लोकसभा चुनाव बसपा से संगीता आजाद ने जीता था। भाजपा ने एक बार फिर अपनी पुरानी प्रत्याशी नीलम सोनकर को चुनावी मैदान में उतारा है।बसपा ने यहां से डॉक्टर इंदू चौधरी को चुनावी मैदान में उतारा है।सपा ने पुराने समाजवादी दरोगा सरोज को चुनावी मैदान में उतारा है।लालगंज लोकसभा में सबसे अधिक संख्या में मुस्लिम वोटर ही हैं। लगभग ढाई लाख मुस्लिम वोटर्स हैं और लगभग 2 लाख यादव वोटर्स हैं। अति पिछड़ों और दलितों का वोट भी इतना है कि निर्णायक हो जाता है।इसलिए यहां की जीत भी बसपा प्रत्याशी की ताकत पर निर्भर करेगा कि वो चुनाव को किस दिशा में मोड़ देता है।

तीन लोकसभा सीटें क्या इस बार भी जीत पाएगी भाजपा

पूर्वांचल में तीन लोकसभा सीटें ऐसी रही हैं जहां भाजपा किसी तरह ही जीत हासिल कर सकी थी। जाहिर है कि उन तीनों सीटों पर जीत बरकरार रखना एक बड़ी चुनौती होगी। चंदौली, मछली शहर और बलिया तीन सीट ऐसी थीं जहां भाजपा बहुत कम वोटों से 2019 में चुनाव जीत सकी थी।

  1. मछलीशहर लोकसभा

यूपी में मछली शहर लोकसभा में सबसे कम अंतर रहा था। भाजपा यहां महज 181 वोटों से जीत हासिल करने में सफल रही थी। मछली शहर में भाजपा ने मौजूदा सांसद बीपी सरोज को प्रत्याशी बनाया है। बीपी सरोज के पास जीत की हैट्रिक लगाने का मौका है, लेकिन एंटी इनकंबेंसी का 2024 न पहलू जरूर बीपी सरोज को परेशान करेगा। सपा ने 3 बार सांसद रहे तूफानी सरोज की 26 साल की बेटी प्रिया सरोज को प्रत्याशी बनाया है। जाहिर है कि इस बार भाजपा के लिए यहां का चुनाव आसान नहीं है।

  1. चंदौली लोकसभा

पिछली बार भाजपा ने पूर्वांचल की चंदौली लोकसभा से जीत हासिल की थी। यहां जीत का अंतर भी ज्यादा नहीं था। चंदौली से भाजपा से डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय महज 13,959 वोट से जीते थे। वहीं इससे पहले इसी लोकसभा से 2014 का चुनाव डॉ. पांडेय ने डेढ़ लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से जीता था। इस बार मुकाबला कड़ा है। सपा ने इस बार यहां से वीरेंद्र सिंह को प्रत्याशी बनाया है। चंदौली लोकसभा से बसपा ने सतेंद्र कुमार मौर्य को प्रत्याशी बनाया है। चंदौली में मौर्य लोगों की निर्णायक भूमिका होती है। सबसे बड़ी बात यह कि मौर्य लोग भाजपा को वोट देते रहे हैं। लगभग तीन बार से यहां से भाजपा प्रत्याशी मौर्य ही होते थे। जाहिर है कि अगर मौर्य वोट भाजपा से कटते हैं तो महेंद्रनाथ पांडेय के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है।

  1. बलिया लोकसभा

बलिया में 2019 का चुनाव भाजपा से वीरेंद्र सिंह मस्त ने मात्र 15,519 वोट से जीता था। शायद यही कारण है कि भाजपा ने उन पर इस बार भरोसा नहीं जताया है। भाजपा ने पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेटे नीरज शेखर को प्रत्याशी बनाया है। नीरज शेखर के सामने सपा के सनातन पांडेय और बसपा के ललन सिंह यादव चुनावी मैदान में हैं। नीरज शेखर की स्थिति यहां मजबूत है पर सनातन पांडेय खेल बिगाड़ने की क्षमता रखते हैं।

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