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महात्मा ज्योतिबा राव फुले की जयंती कल : ज्योति राव फूले ने लड़ी वंचित समाज के हकों की लड़ाई ,,,,

Mahatma Jyotiba Rao Phule's birth anniversary tomorrow: Jyoti Rao Phule fought for the rights of the deprived society.

(राकेश यादव)

राकेश यादव यूपी के वरिष्ठ पत्रकार हैं

ज्योति राव गोविंदराव फुले एक भारतीय समाज सुधारक, विचारक, लेखक और महान क्रांतिकारी दार्शनिक थे। इनका जन्म 11अप्रैल 1827 में खान वाड़ी पूणे महाराष्ट्र उस समय हुआ था, जब भारत के लोग आजादी के लिए अंग्रेजो से एवं वंचित समाज अपने ही देश में, अपने हकों की लड़ाई लड़ रहे थे। उस समय की प्रचलित सामाजिक व्यवस्था के अनुसार ज्योति राव फुले का 13 वर्ष की आयु में 9 वर्षीया सावित्रीबाई फुले के साथ सन् 1840 में विवाह हो गया था। उस समय अबोध ज्योति राव फुले को विवाह का मतलब नहीं पता था। उनकी पत्नी सावित्रीबाई भी अबोध थी। जिन रीति-रिवाजों के अनुसार उनका बाल- विवाह हुआ। उसी का आगे चलकर उन्होंने विरोध किया। अंग्रेजी शिक्षा ने ज्योति राव फुले और उनकी पत्नी के लिए नया संसार खोला, साथ ही उन्हें जीवन का नया दर्शन भी मिला। सन् 1847 में उनकी मिशनरी अंग्रेजी शिक्षा पूर्ण हुयी। विद्यार्थी जीवन में ही उन्होंने मौलिक ग्रंथ तथा किताबों का अध्ययन किया। पढ़ने – लिखने का अवसर मिला। उसके कारण सामाजिक सेवा तथा लोक कल्याण के प्रति उनका विचार जाग्रत हुआ। समाज में अनुसूचित जाति के एवं अन्य पिछड़े वर्ग के लोगों के हकों के लिए लड़ाई आरंभ कर दिया। उस समय अनुसूचित जाति के एवं अन्य पिछड़े वर्गों के लिए शिक्षा के लगभग सभी दरवाजे बंद थे। इस संबंध में ज्योति राव फुले ने वंचित समाज को शिक्षा दिलाने का बीड़ा उठाया और अथक प्रयास किया। जिसमें सबसे पहले 01 जनवरी सन् 1884 में ज्योति राव फुले ने पुणे स्थित तात्या साहब भिंडे की हवेली में लड़कियों के लिए पहला विद्यालय खोला। तात्यासाहेब भिंडे परोपकारी, दयाशील एवं उदार व्यक्तित्व के थे। इसलिए उन्होंने ज्योति राव फुले के इस शिक्षा के कार्य के लिए अपनी हवेली बिना कुछ किराया लिए दे दी थी। इस स्कूल की प्रथम छात्रा और प्रथम अध्यापिका सावित्रीबाई फुले थी। ज्योतिराव फूले सबसे पहले अपने मित्रों की लड़कियों को स्कूल में दाखिला दिया 01 जनवरी सन् 1848 को सबसे पहले 06 लड़कियों का विद्यालय में दाखिला मिला। ज्योति राव फूले यह बात भली-भांति समझते थे, कि किसी भी व्यक्ति और समाज की सोचने और समझने की क्षमता केवल शिक्षा से ही हो सकती है। इसीलिए व्यक्ति के जीवन में शिक्षा बहुत ही आवश्यक होती है। अपने अथक प्रयास इस प्रकार ज्योतिराव फूले ने 18 विद्यालय खोलें। जिसमें से कुछ विद्यालय अनुसूचित जाति के क्षेत्रों में थे। इन सराहनीय कार्यो के लिए सार्वजनिक रूप से सम्मानित करने के लिए 16 नवंबर सन् 1852 को पुना के विश्रमबाग बाड़ा में एक विशेष समारोह का आयोजन हुआ। समारोह की अध्यक्षता पुना संस्कृत कॉलेज के प्राचार्य मेजर कैंडी ने की। समारोह में सर्वप्रथम उन्हें शिक्षा बोर्ड का प्रस्ताव पढ़कर सुनाया और उपस्थित लोगों को समारोह के आयोजन के उद्देश्य के बारे में जानकारी दी। तत्पश्चात उन्होंने सरकार की ओर से ज्योतिबा राव फुले को ₹200 मूल्य की 2 शाल भेंट की, तथा उन्हें पुष्प माला अर्पण कर उनको सम्मानित किया गया। समारोह में ज्योतिबा राव फुले के मित्र बापू राव मान्डे मोरेश्वर शास्त्री का भाषण हुआ। उन्होंने ज्योतिबा राव फुले के शैक्षिक कार्यों की सराहना की और उपस्थित लोगों को स्त्री शिक्षा का महत्व समझाया। बाद में मेजर कैंडी ने मराठी भाषा में अपना अध्यक्षीय भाषण किया।
अपने सम्मान का उत्तर देते हुए ज्योतिबा राव फुले ने सभी मित्रों प्रशंसकों तथा शुभचिंतकों को उनके सहयोग के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि मैं जीवन में जो कुछ आज तक किया है वह सब कुछ परम शक्ति तथा अपनी सदविवेक बुद्धि पर भरोसा रखते हुए ही किया है। इस अवसर पर ज्योतिबा राव फुले के बालिका विद्यालय की एक कक्षा का परीक्षण हुआ और उसमें भाग ले रही सभी छात्राओं को अगली कक्षा के लिए पास किया गया। समारोह में स्थानीय भारतीयों के अलावा अनेक अंग्रेज अधिकारी तथा दो-तीन अंग्रेज महिला भी उपस्थित थी।
बहुजन समाज को उनकी धार्मिक, सामाजिक तथा आर्थिक गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए जिस सामाजिक क्रांति के आंदोलन की आवश्यकता है, उस आंदोलन को चलाने के लिए जिन्होंने धर्म तथा संस्कृति के नाम पर उनको गुलाम बनाया है, वह वर्ग कभी भी आगे नहीं आयेगा। यह बात ज्योति राव फुले भली-भांति जानते थे। उन्होंने अपने “गुलामगिरी ग्रंथ” में उन्होंने कहा है – “हम निश्चित रूप से जानते हैं कि संघर्ष के बगैर समाज में ऊंच- नीच पैदा करने वाला वर्ग अपनी स्वनिर्मित श्रेष्ठत्व की कल्पना से नीचे उतरना नहीं चाहेगा और न ही अपने कुनबी अथवा अन्य छोटी जाति के भाइयों से बराबरी के स्तर पर मिलना चाहेगा। इतना ही नहीं जो अपना निश्चित सामाजिक स्थान जानते हैं और उन्हें प्राप्त करने के लिए उन्होंने क्या-क्या किया यह भी जानते हैं। कि ऐसे शिक्षित लोग भी अपने पूर्वजों की गलतियों को मानने के लिए तैयार नहीं है। तब स्वेच्छा से अपनी दीर्घकालीन श्रेष्ठत्व की भावना का त्याग करने के लिए तैयार नहीं है। सामाजिक क्रांति का यह आंदोलन समाज के शोषित तथा उत्पीड़ित वर्ग द्वारा होना चाहिए। ऐसा ज्योतिराव फुले का प्रतिपादन था। वह कहते हैं कि “सर्व मनुष्य मात्र को सर्वसाधारण अधिकार इस संसार के निर्माता तथा सर्व साक्षी परमेश्वर ने दिए हैं अगर उसे कोई छीनता है तो उसे पुनः प्राप्त करने के लिए हम कभी भी पीछे नहीं हटेंगे”
ज्योति राव फुले की मान्यता थी कि हजारों वर्षों से बहुजन समाज गुलामी सहन करता रहा, इसका मुख्य कारण उनका अज्ञान है। उन्होंने “किसान का कोड़ा” इस ग्रंथ की प्रस्तावना में कहा है-
” विद्या के अभाव से बुद्धि का ह्रास हुआ।
बुद्धि के अभाव से नैतिकता की अवनति हुयी।
नैतिकता के अभाव से प्रगति अवरूद्ध हो गयी।
प्रगति के अभाव से संपत्ति लुप्त हो गयी।
संपत्ति के अभाव से सूद्र मिट गये।
सारी विपत्तियों का आविर्भाव अज्ञान से ही हुआ है।
इसका मतलब है कि जो लोग अपने नैसर्गिक अधिकारों से वंचित रह गए हैं, वे अपने अधिकार पुनः प्राप्त कर सकते हैं। परंतु इसके लिए उनका अज्ञान दूर होना चाहिए।
ज्योति राव फुले का व्यक्तित्व मूलतः एक कृतिशील क्रांतिकारी का व्यक्तित्व था। अपने कार्य तथा आंदोलन के लिए उन्होंने विभिन्न विषयों की पुस्तकों का अध्ययन किया। पुस्तकीय ज्ञान को फूले अधिक महत्व नहीं देते थे। अपने आंदोलन को दिशा तथा विचार देने के लिए उन्होंने आवश्यकता के अनुसार लेखन कार्य भी किया था। इसके लिए उनका लेखन लगभग डेढ़ सौ वर्ष पूर्व हुआ था। फिर भी समय की तुलना में उनमें एक विलक्षण सूझबूझ थी। समाज के सभी वर्गों के लोगों के साथ उनका सतत् निरंतर और घनिष्ठ संबंध रहता था। वह उच्च कोटि के चौकस और सामाजिक चिकित्सक थे। छोटी -छोटी बातें भी उनकी नजर से छूटती नहीं थी। उनका अत्यधिक क्षूक्ष्म निरीक्षण था। इसके साथ ही भारतीय समाज के सबसे दुखी तथा उत्पीड़ित शूद्र अतिशूद्र वर्गों के उत्थान के लिए उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया था। उनके लेखन तथा साहित्य के पीछे यह मूलभूत प्रेरणादायक विचार कार्यरत हैं। उनकी विचारों की श्रंखला का अवलोकन तथा अध्ययन करते समय हमें उनकी बातों का विशेष ध्यान देना होगा। आज उनकी जयंती पर हम उन्हें नमन् करते हैं।

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