रिपोर्ट बबलू सेंगर

Jalaun news today ।जालौन क्षेत्र में शरद पूर्णिमा पर बुंदेलखंड के पर्व टेसू और झिंझिया की बारात निकाली गई। विभिन्न मोहल्लों में आयोजित इस कार्यक्रम का लोगों ने जमकर आनंद लिया।
शरद पूर्णिमा पर नगर में कई स्थानों पर टेसू झिंझिया के विवाह के आयोजनों की धूम रही। लोगों का मानना है कि टेसू झिंझिया के ब्याह के बाद से शादी, विवाह का दौर शुरू हो जाता है। उसमें कोई अड़चन नहीं आती है। नगर के मोहल्ला तोपखाना, जोशियाना, हरीपुरा, चुर्खीबाल में युवाओं की टोली ने टेसू की बारात निकाली।
यह है कथा
टेसू और झिंझिया के विवाह को लेकर पंडित देवेंद्र दीक्षित ने बताया कि भीम के पुत्र घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक जिसे बुंदेलखंड में भौमासुर भी कहते हैं, को महाभारत का युद्ध देखने आते समय झिंझिया को देखते ही प्रेम हो गया। जब झिंझिया ने विवाह का प्रस्ताव रखा तो उन्होंने युद्ध से लौटकर झिंझिया को विवाह का वचन दिया। लेकिन अपनी मां को दिए वचन, कि हारने वाले पक्ष की तरफ से वह युद्ध करेंगे, के चलते वह कौरवों की तरफ से युद्ध करने आ गए और श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से उनका सिर काट दिया। वरदान के चलते सिर कटने के बाद भी वह जीवित रहे और उन्होंने अपने कटे सिर से महाभारत का युद्ध देखा। युद्ध के बाद मां ने विवाह के लिए मना कर दिया। इस पर बर्बरीक ने जल समाधि ले ली। झिंझिया उसी नदी किनारे टेर लगाती रही लेकिन वह लौट कर नहीं आए। इस तरह एक प्रेम कहानी का अंत हो गया। प्रेम के प्रतीक इस विवाह में प्रेमी जोड़े के विरह को बड़ी ही खूबसूरती से दिखाया जाता है। लड़के थाली-चम्मच बजाकर टेसू की बारात निकालते हैं। वहीं लड़कियां भी शरमाती-सकुचाती झिंझिया रानी को भी विवाह मंडप में ले आती हैं। फिर शुरू होता है ढोलक की थाप पर मंगल गीतों के साथ टेसू-झिंझिया का विवाह। लेकिन सात फेरे पूरे भी नहीं हो पाते और लड़के टेसू का सिर धड़ से अलग कर देते हैं। वहीं झिंझिया भी अंत में पति वियोग में सती हो जाती है। घटोत्कच के पुत्र टेसू के नाक, कान व मुंह कौड़ी के बनाए जाते हैं। विवाह के बाद टेसू का सिर उखाड़ने के बाद लोग इन कौड़ियों को अपने पास रख लेते हैं। कहते हैं कि इन सिद्ध कौड़ियों से मन की मुरादें पूरी हो जाती हैं।
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