Lucknow news today। भारत के वयोविशिष्ठ मंदिर
वृद्धा आश्रम में रह रहे बुजुर्गों के बीच उनके मनोभावों के साथ बातचीत करना वाकई एक दिल को सुकून देने वाला काम होता है पर आज की भागम भाग, आपाधापी भरी जिंदगी में समय अभाव के कारण हम लोग अपने बुजुर्गों को समय नहीं दे पा रहे यही कारण है कि उनकी एक अलग दुनिया बनती जा रही है जहां उनके अपने ही उन्हें गैर सिद्ध करने में लगे हुए हैं शहरों में कुछ स्खर्च और कुछ सरकारी सहायता प्राप्त वृद्धा आश्रम खुलते जा रहे हैं। मातृ नवमी के दिन लखनऊ के सरोजिनी नगर के विधायक डॉ राजेश्वर सिंह के द्वारा क्षेत्र के वृद्ध आश्रम में उनकी आवश्यकता और मांग के अनुसार सीएसआर फंड के माध्यम से 10 लाख रुपये एक कम्युनिटी हॉल बनाने के लिए दान किया गया ।
इस कार्यक्रम में बुजुर्ग बाबा और दादी से बात करने का एक अच्छा अनुभव प्राप्त हुआ बुजुर्ग और बच्चे एक समान होते हैं यह पता चला जब बुजुर्ग बाबा लोगों ने मांग की कि उनके कमरे में चारों के और लूडो जैसे खेल अगर रख दिए जाएं तो खेलने में बड़ा मजा आएगा और समय भी बहुत अच्छे से कटेगा। लगभग 140 की संख्या में उपस्थित बुजुर्ग शांत चित होकर सुन रहे थे लगभग 3 घंटे हम लोगों ने आपस में बातचीत की एक दूसरे के सुख-दुख को जानने तथा सभी को इस कार्यक्रम में खुलकर प्रतिभा करने हेतु मैंने प्रोत्साहित किया। निश्चित रूप से एक परिवार में हम अपने एक बुजुर्ग सास ससुर और माता-पिता को नहीं समय दे पा रहे हैं इन आश्रम के रूप में वरिष्ठ जनों के बने हुए इन मंदिरों में ईमानदारी, सुचिता और पवित्रता, सेवाभाव से काम करने वाले एनजीओ हो या फिर कोई पर्सनल ट्रस्ट सम्मानजनक जीवन संभालना कठिन है।

मातृ नवमी के उपलक्ष में माननीय विधायक द्वारा बुजुर्ग महिला और पुरुष बाबा दादी लोगों को कपड़े कुर्ते पजामा साड़ी फल मिठाई इत्यादि भेंट कर उनका हाल-चाल लिया गया और उनके द्वारा मांगी गई खेल सामग्री को शीघ्र ही पहुंचने का आश्वासन दिया तथा मीटिंग और कार्यक्रमों के लिए एक हाल बनाने का चेक भी जिम्मेदार लोगों को दिया।
इस अवसर पर संजीव सिंह नामक बाबा ने बहुत ही सुंदर सुरीले और सदे हुए गीतों के माध्यम से देश भक्ति प्रेम एकांतिक भजन के रूप में सभी का मनोरंजन किया।
भारत की अक्षांश सभ्यता और संस्कृति वाला हमारा देश सनातन परंपरा का निर्वाह करते हुए संयुक्त परिवार और बड़े वटवृक्ष रूपी परिवार की कल्पना से पल्लवित और पुष्पित होता रहा है इसके बावजूद वैश्वीकरण के युग में कहां कमी आ गई कि हमें अपने बुजुर्गों को बेमन से जबरदस्ती या किसी भी कारण से अलग वृद्धा आश्रम में रखना पड़ रहा है इस बात को सोचने और समझने की जरूरत है। उन सब की सूनी आंखें बुझे हुए मनोभाव को देखकर मन तो दुखी हुआ पर सा सामान जीवन जीने की और नए दोस्त बनाने की इस प्रगति से एक नई ऊर्जा भी मिली।बढ़ती जनसंख्या काम नौकरियों की संख्या जमीनों की घटती तादाद मोबाइल कल्चर से युक्त सोचिए फिर हमारे आने वाली पीढ़ियां का क्या होगा। ईश्वर से इसी आशा अपेक्षा और प्रार्थना के साथ कि हमारे समाज में सौहार्द बड़े आपसी प्रेम बड़े और एक बार फिर हम संयुक्त परिवारों की ओर लौटे और सभी लोग स्वस्थ और दीर्घायु हो।
